क्या कहा सुनसान हवा कह रही किस्से किसी के
ये भी लगता पड़ गयी मेरे जैसे हिस्से किसी के
एक तरफ तो आग है और एक तरफ ये खाई है
आये थे लेकर के हम भी आँख मे नक्शे किसी के ॥
Comment
आदरणीय योगेन्द्र जी सुन्दर भावपूर्ण रचना हुई है किन्तु मात्र दो शेर तो उचित नहीं है कमसे कम पांच तो अवश्य ही होना चाहिए.सादर.
आये थे लेकर के हम भी आँख मे नक्शे किसी के ॥
क्या कहने भाई
बहुत खूब
आदरणीय योगेन्द्र भाई आपकी तरह मैं भी छोटा ही हूं अभी यहां। आप सबके साथ ही मैं भी सीख रहा हूं। हम सब साथ ही बड़े होंगे।
मुझे कुछ दिक्कत लगी उसे आपको इंगित किया। आपने मेरे कहे को मान दिया इसके लिए आपका आभार!
बृजेश जी छोटे बच्चे जब चलना शुरू करतें हैं तो लड़खड़ाते ही हैं । इसीलिए ऐसा हुआ है आगे से मैं कोशिश करूंगा की आपकी उम्मीदों पे खरा उतरूँ ॥ इस परिवार का सबसे छोटा और नादान, लड़खड़ाते हुए कदमों वाला और तुतलाती हुई ज़बान वाला समझ कर माफ करने की कृपा करें । आपके विचार मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्यूंकी इनहि से मुझे प्रेरणा और बहुत कुछ सीखने को मिलता है ॥
बहुत बहुत धन्यवाद बृजेश जी॥
लक्ष्मण जी बहुत बहुत शुक्रिया
अन्नपूर्णा जी धारों धन्यवाद आपको...
bahut bahut shukriya kunti ji...
बस इतना ही......कम से कम नक्शा तो दिखा ही जाते .......योगेंद्र जी.
बढ़िया मुक्तक बहुत बधाई ।
अच्छा मुक्तक बधाई
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