For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

14 पंक्तियां, 24 मात्रायें

तीन बंद (Stanza)

पहले व दूसरे बंद में 4 पंक्तियां

पहली और चौथी पंक्ति तुकान्त

दूसरी व तीसरी पंक्ति तुकान्त

तीसरे बंद में 6 पंक्तियां

पहली और चौथी तुकान्त

दूसरी व तीसरी तुकान्त

पांचवीं व छठी समान्त

 

सब तो है वैसा ही, आखिर क्या है बदला

उठते बादल स्याह गगन में हैं बगुले से

छाए मन पर भाव कुम्हलाए छितरे से

दुख का सागर लहराता न तनिक भी छिछला

 

चिड़िया चहकीं पर गौरैया बहकी बहकी

इस डाली से बस उस डाली फिरती रहती

खिलीं हैं कलियां भी और कोंपल मुस्काती

फिर भी न हरियाई, बगिया अब भी न महकी

 

हर तरफ हैं किरनें चमकी और छितरी सी

न जाने क्यूं फिर भी ये अंधियारा चुभता

कोई शीशा टूट गया रह रहकर चुभता

इधर समेटूं पाखें लहुलुहान बिखरी सी

बस प्रतीक्षा शेष रही, काश! तुम आ जाओ

यहां क्षितिज पर स्वर्णिम आभा सी छा जाओ

                           - बृजेश नीरज

Views: 1021

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Vindu Babu on June 4, 2013 at 4:34pm

परम् आदरणीय सौरभ पाण्डेय महोदय एवं आदरेया गीतिका जी आपनें इस विधा में रुचि दिखाई यह देखकर बड़ा अच्छा लगा।
मेरा हृदय में एक कसक सी है कि हिन्दी में यह विधा को आसानी से गति क्यों नहीं मिल पा रही है,जबकि अन्य भाषाओं में विश्वप्रसिद्ध हो चुकी है और हो भी रही है।
मुझे आपलोगों की विशेष प्रतीक्षा थी,जिससे इस चर्चा को एक ठोस रूप मिल सके और आपसी सहयोग से इस विधा पर एक सुगम सिद्धान्त निकाला जाय।
आदरणीय मैं आभार का पात्र कैसे?मैं तो चाह कर भी त्रिलोचन जी के पद चिन्हों का अनुकरण कर सानेट को आगे नहीं बढ़ा पा रही हूं। सार्थक कदम तो आपका है,आप बधाई के पात्र हैं।
सादर

Comment by बृजेश नीरज on June 4, 2013 at 7:39am

आदरणीय गीतिका जी आपका आभार!
इस विधा में आप उल्लिखित नियमों के तहत प्रयास कर सकती हैं। इस विधा में दो रचनायें मैंने लिखने का प्रयास किया था। दोनों ही ओबीओ पर पोस्ट हैं। उन रचनाओं पर हुई चर्चा से इस विधा के विषय में बहुत कुछ ज्ञात हो सकता है।

Comment by वेदिका on June 4, 2013 at 12:42am

बहुत सुंदर प्रस्तुति सोनेट की ...आदरनीय बृजेश जी! 

क्या सोनेट का यही नियम है जो आपने उल्लेख किया ? इसी नियम के तहत सोनेट लिखे जायेगे? 
शुभकामनाये 
Comment by बृजेश नीरज on June 4, 2013 at 12:06am

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार! ये नई विधा पर मेरा प्रयास था इसलिए आपसे मार्गदर्शन बहुत आवश्यक था मेरे लिए, परन्तु आपकी व्यस्तता आड़े आ रही थी। यह इस विधा पर मेरा दूसरा प्रयास था और एक मायने में पहला भी क्योंकि मैंने दो रचनायें इस विधा पर लिखने का प्रयास किया था लेकिन दोनों शिल्प में भिन्न थी। गेयता के क्षेत्र में दोनों में ही कमी रह गयी होगी। आगे की रचनाओं में इस कमी को दूर कर सकूं ऐसा मेरा प्रयास रहेगा।

मैंने इस विधा के विषय में त्रिलोचन जी की रचनाओं का अध्ययन करते वक्त ही जाना। आगे इस विधा के विषय में मेरी समझ को विकसित करने में वाकई वंदना जी का बहुत योगदान रहा। अब भी हमारी चर्चा और अध्ययन इस विधा को लेकर गतिमान है। उनके इस योगदान का मैं भी ऋणी हूं।

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2013 at 11:54pm

भाई बृजेशजी, मैं मुग्ध हूँ इस प्रस्तुति पर !

आपकी प्रस्तुति का कथ्य इतना प्राकृतिक और आत्मीय है कि मन झूम उठा. वैसे प्रवहमान पंक्तियों की कसौटियों पर आपकी एक-दो पंक्तियाँ प्रयास मांग रही हैं. परन्तु, जिस रोमांस की चाहना पंक्तियाँ रखती हैं, आपने उन्हें उससे खूब संतुष्ट किया है. इस हेतु बहुत-बहुत बधाई.

सोनेट को हमने अंग्रेज़ी में शेकेसपीयर के माध्यम से ही देखा पढ़ा है. हिन्दी में यह विधा नई कविता के साथ आयी जरूर किन्तु नई कविता की आँधी में बह गयी. अब नई कविता स्वयं विलुप्तप्राय है. ठीक इसी के बाद गद्य कविताएँ दीखने लगी थीं. सो सारा कुछ एक साथ हुआ और साथ ही तिरोहित भी.

इसमें कोई शक नहीं कि शहरी (अर्बन) भद्रता (अरबेन) आधुनिक भाव (मोडर्निटी) के भार का वहन अपनी प्रकृति के कारण सोनेट खूब कर सकते हैं, आवश्यकता है इनको व्यवस्थित कर हिन्दी में प्रासंगिक करने की और तदनुरूप प्रचलित करने की.

बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ

आदरणीया वन्दना तिवारी जी के प्रति आभार कि आपने आपके साथ इस विधा पर रोचक चर्चा कर पाठकों से सम्मति लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायीं. 

मैं स्वयं के लिए पुनः कहूँगा... वाकई मैं इस पन्ने को भी देर से देखा. 

ओह  !

Comment by बृजेश नीरज on May 29, 2013 at 9:27am

आदरणीय रक्ताले जी आपका आभार!

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 29, 2013 at 8:42am

भावपूर्ण सुन्दर रचना सॉनेट/तुम आ जाओ. वर्णित  विधान का पालन करती हुई. सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on May 29, 2013 at 8:37am

आदरणीय केवल भाई आपका आभार!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 26, 2013 at 9:41am

आ0 बृजेश भाई जी,   बहुत सुन्दर रचना।.. बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by बृजेश नीरज on May 25, 2013 at 11:59pm

आदरणीया मैं निवेदन करना चाहता हूं कि हिन्दी में यह विधा स्थापित हो चुकी है लेकिन संभवतः इसके स्वरूप, शिल्प और गेयता में विविधता और जटिलता के कारण इस पर लोग प्रयास करते नहीं दिखते क्योंकि इसका कोई सीधा फार्मूला नहीं।
बुराई किसी तरह के प्रयोेग में नहीं है। बस गेयता बनी रहनी चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात कि इस सुंदर विधा पर आगे और कार्य हो।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service