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क्लीवत्व नदी बहती

सुनो बली है भारत भू अन्याय नहीं किंचित सहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

सच मानो हर मन में हमको क्रान्ति जगाना आता है
पाक बंग या चीन सरीखों को समझाना आता है
सत्य धर्म की रक्षा में हैं प्राण दान भी दे देते
तुष्ट करे रणचंडी को वो चक्र चलाना आता है

वक्र दृष्टि हो जाये हम पर जो वो दृष्टि नहीं रहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

राष्ट्रवाद बलवान बड़ा है तभी सुनो यह देश टिका

पर क्षत्रप डरपोक बड़ा या दो कौड़ी के मोल बिका
तभी शत्रु मेरे घर में घुसकर अधिकार जताता है
ज्ञानी कह देते प्रभाव भी जाने इसको क्यों कलि का

भारत माँ वीरता त्याग को कभी नहीं सुन लो कहती

सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

ये आह्वान सुनो मेरा है उठो भारती पुत्र चलो
वक्ष चीर दो आज शत्रु का और शीश उसका मसलो
अंशुमान की अग्नि तपाये या हिमगिरि दे हाड़ गला
किन्तु निराशा में आकर तुम मत अपने यों हाथ मलो

ये विवेक से युक्त शक्ति है नहीं किसी को भी डहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

झाला बोला आज स्वर्ग से बोल पडा राणा सांगा
मिला मात्र अधिकार उसी को जिसने लड़कर के माँगा
क्या भिक्षा में पाण्डुपुत्र ले पांच गाँव भी पाए थे
उठा न क्यों यमदण्ड शीश अरि क्यों न उसी पर था टांगा

त्याग तपस्या योग यहीं पर मित्र तरंगित हो लहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती

सुनो बली है भारत भू अन्याय नहीं किंचित सहती
सत्ता के गलियारों में तब क्यों क्लीवत्व नदी बहती
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ

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Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2013 at 11:19pm

ये आह्वान सुनो मेरा है उठो भारती पुत्र चलो 
वक्ष चीर दो आज शत्रु का और शीश उसका मसलो................इसी जोश की आवश्यकता है.
अंशुमान की अग्नि तपाये या हिमगिरि दे हाड़ गला............बहुत सुन्दर बिम्ब  
किन्तु निराशा में आकर तुम मत अपने यों हाथ मलो..........वाह! हर अंग अंग में जोश भरती वीर रस से सराबोर रचना.

आदरणीय डॉ. आशुतोष वाजपेयी साहब सादर स्वागत है आपका ओ बी ओ के मंच पर, बहुत सुंदर रचना बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 20, 2013 at 11:08pm

आ0 आशुताष भाई जी, वाह! क्या तेवर है-
’सच मानो हर मन में हमको क्रान्ति जगाना आता है
पाक बंग या चीन सरीखों को समझाना आता है
सत्य धर्म की रक्षा में हैं प्राण दान भी दे देते
तुष्ट करे रणचंडी को वो चक्र चलाना आता है’
अतिसुन्दर भावों के लिए तहेदिल से हार्दिक बधाई स्वीकारे। सादर,

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