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वीर छन्द,,,(आल्हा छन्द)

वीर छन्द,,,(आल्हा छन्द)
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सदा न यॊद्धा रण मॆं जीतॆ, रहॆं न सदा हाँथ हथियार ।

जीना मरना वहीं पड़ॆगा,जिसका जहां लिखा करतार ॥

कई साल तक रहा ज़ॆल मॆं, बाँका सरबजीत सरदार ।

उसॆ छुड़ा ना पायॆ अब तक,सॊतॆ रह गयॆ पाँव पसार ॥

हाय  हमारॆ  मौनी  बाबा, करतॆ  रहॆ  नॆह- सत्कार ।

लूटा खाया इस भारत कॊ,गूँगी  बनी  रहीं  सरकार ॥

भईं सभायॆं सब नाहक मॆं,दुश्मन ठहरा नीच गवाँर ।

छॊड़ दियॆ कुछ कैदी उसनॆ, बॊला इसॆ लगादॊ पार ॥


बॊला बॆटा तब भारत का, पापी सुनलॊ कान लगाय ।

इसी घड़ी की ख़ातिर मैया,पाला मुझकॊ दूध पिलाय ॥

पैदा नहीं हुआ जॊ मारॆ, जब तक चण्डी करॆ  सहाय ।

बाँई भुजा भगतसिंह मॆरॆ,दहिनॆ विंध्य-वासिनी माय ॥

सिरपॆ साया गुरु-गॊविँद का,छाती बज्र गहॆ हनुमान ।

राहू - कॆतू हैं आँखिन मॆं,मंगल शनी महा बलवान ॥

आज  निहत्था ही निपटूँगा, मॆरॆ हाँथ नहीं किरपान ।

याद दिला दूँ  दूध छठी का, भारत माँ की मैं संतान ॥

जिस धरती पर मैं हूँ जन्मा, पैदा हॊतॆ सजॆ कटार ।

एक बराबर सवा लाख कॆ, हॊता भारत का सरदार ॥

माँगूं भीख ज़ान की तुमसॆ,मॆरॆ जीवन कॊ धिक्कार ।

मुझॆ कसम है भारत माँ की,खाऊँ नहीं पींठ पॆ वार ॥

नहीं गीदड़ॊं कॆ जायॆ हैं, हम नाहर कॆ लाल कहाँय !

एक मरॆगा यहाँ ज़ॆल मॆं, पैदा लाख  वहाँ हॊ जाँय ॥

बच्चा,बच्चा भारत माँ का,ठॊंकॆ ताल युद्ध मॆं आय ।

रण-चण्डी हैं माता बहनॆं, कच्चा जायॆं पाक चबाय ॥

सदा मौत सॆ हम हैं खॆलॆ, जीतॆ हरदम शीश उठाय ।

नहीं किसी सॆ डरनॆ वालॆ, चाहॆ काल खड़ा हॊ आय ॥

बड़ॆ सूरमा दॆखॆ हम नॆं, जब जब भागॆ पींठ दिखाय ।

कायरता की हदॆं तॊड़ दीं, कुत्तॆ  भारत  मॆं पहुँचाय ॥

दॊ-दॊ आतंकी कुत्तॊं कॊ, सूली पर हम दिया चढ़ाय ।

हाल वही उन सबका हॊगा, जॊ ज़ॆलॊं मॆं रहॆ मुटाय ॥

खड़ॆ शॆर कॆ सम्मुख काहॆ, गीदड़ आँखॆं  रहॆ दिखाय ।

माँ का दूध पिया जॊ तुमनॆ,बारी-बारी लॊ अज़माय ॥

बातॆं सुनकॆ सरबजीत की, दुश्मन गयॆ सनाका खाय ।

धरती पर है खड़ा हमारी, रहा हमॆं ही आँख दिखाय ॥

इतना कहकॆ फिर पीछॆ सॆ,उन नॆ दीन्हा वार चलाय ।

भारत माँ का प्यारा बॆटा, धरनी  गिरा  तरॆरा खाय ॥

एक निहत्थॆ कॆ ऊपर सब, करनॆ लगॆ घपा-घप वार ।

ज्यॊं पिंजड़ॆ मॆं बंद शॆर का,कायर कुत्तॆ करॆं शिकार ॥

मुर्छा आई  सरबजीत कॊ, बहनॆ लगी खून की  धार ।

बूँद बूँद कहती जाती थी,भारत माँ की जय जयकार ॥

कवि-"राज बुन्दॆली"

०५/०५/२०१३

 

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on May 8, 2013 at 12:21am

  Dr Dilip Mittal     जी भाई साहब धन्यवाद,,,आभार,,,,

Comment by Dr Dilip Mittal on May 7, 2013 at 6:04pm

अच्छी कविता के लिए बधाई और हमारी नाकारा सरकार के लिए ४ पंक्तियाँ 

 

सरबजीत ने देश कि  लाज रख ली ,
उसके दिल ,गुर्दे थे तो निकाल लिये ,
अगर किसी नेता के टटोलते तो ,
देश को शर्मसार होना पड़ता ,
न दिल, जिगर  ना खोजने पर दिमाग,
का कही पता चलता .

 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on May 7, 2013 at 2:02pm

कुमार गौरव अजीतेन्दु जी भाई साहब धन्यवाद,,,आभार,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on May 7, 2013 at 2:01pm

Sudheer Maurya 'Sudheer'  जी भाई साहब आभार,,,,आपने रचना को समय दिया और रचना-धर्म को प्रोत्साहन दिया,,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on May 7, 2013 at 2:00pm

बसंत नेमा जी ,,,,भाई साहब,,,,,, आपका बहुत बहुत आभार इस स्नेहाशीष के लिये,,,,,,,,,

Comment by Sudheer Maurya on May 7, 2013 at 1:19pm

मन मे जोश पैदा करते छ्ंद ,,, बधाई स्वीकारे

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 7, 2013 at 1:19pm

सबसे पहले तो शहीद सरबजीत सिंह जी को नमन। उस "नापाक" देश से और उम्मीद भी क्या की जाये। 

बातॆं सुनकॆ सरबजीत की, दुश्मन गयॆ सनाका खाय ।

धरती पर है खड़ा हमारी, रहा हमॆं ही आँख दिखाय ॥

इतना कहकॆ फिर पीछॆ सॆ,उन नॆ दीन्हा वार चलाय ।

भारत माँ का प्यारा बॆटा, धरनी  गिरा  तरॆरा खाय ॥

बहुत सुंदर ओजपूर्ण पंक्तियां लिखी हैं आपने आदरणीय बुंदेली जी। आपको हार्दिक बधाई प्रेषित है।

Comment by बसंत नेमा on May 7, 2013 at 12:45pm

पढते पढते रोंगटॆ खडॆ हो रहे है..... मन मे जोश पैदा करते छ्ंद ,,, बधाई स्वीकारे .... 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on May 7, 2013 at 11:29am

आदरणीया rajesh kumari जी ,,,रचना आपके मन को भा गई अर्थात मेरी मेहनत सफल हुई,,,,मै आपके इस स्नेह को नमन करता हूं,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on May 7, 2013 at 11:27am

आदरणीय Saurabh Pandey सर जी,,,,, गुरुवर मेरे वीर छ्न्द विधा के प्रथम प्रयास को आपने,,,अपना जो स्नेह दिया है मैं गदगद हृदय से आपको नमन करता हूँ,,,,,,,,,,,सादर प्रणाम,,,,,,,,,,,

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