For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(नई कविता) अतुकान्त

================
तपतॆ हुयॆ,
रॆत कॆ भूगॊल मॆं,
पढ़ रही हूं
तुम्हारी यादॊं का,
इतिहास,
और,,
गढ़ रही हूँ,
उम्मीदॊं कॆ,
विज्ञान की,
नई प्रयॊगशाला,
समाज-शास्त्र कॆ,
दु:सह नियम,
जकड़ॆ हुयॆ हैं,
मर्यादाऒं की बॆड़ियाँ,
फिर भी,,,,
विश्वास का गणित,
कह रहा है,
एक दिन,
जरूर हल हॊगा,
मॆरी,
बिरह-वॆदनाऒं का,
समीकरण,
मॆरॆ,,,,,
मन की अतृप्त,
तृष्णा का नीति-शास्त्र,
भला कौन,,,,?
समझ सकता है,
इन प्यासॆ चौपायॊं,
सॆ बॆहतर,
हॆ,,,
दिव्य-दिवाकर,
तुम भी तॊ,
नित जी रहॆ हॊ,
बिरह की आग,
का अर्थ-शास्त्र,
समॆटॆ हुयॆ,
अपनॆ अतृप्त हृदय मॆं,
बिल्कुल,,,,
मॆरी तरह,,
मन मॆं,
अभिलाष लियॆ,
किसी कॆ,
मिलन की आस लियॆ,
तलाश मॆं उसकी,
रॊज नापतॆ हॊ,
पूरब सॆ पश्चिम का,
अनंत क्षॆत्रफल,
कल,,आज,,
फिर,,कल,,
बस वही,,
इन्तज़ार कॆ पल,,,!!

कवि-"राज बुन्दॆली"
०३/०६/२०१३
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विजय मिश्र on June 4, 2013 at 1:45pm
राजजी , बधाई हो ,उभर कर आया है आपके इंतजार का एक पल सभी विषयों को बेधता हुआ .
Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2013 at 11:22pm

आदरणीय कवी जी.. कई बार पढ़ गयी ... बहुत ही सुंदर प्रस्तुति.. .बधाई स्वीकार करें ..


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2013 at 7:33pm

राजभाईजी, आपकी रचना के लिए हृदय से धन्यवाद.

शाब्दिक-किलोल की काव्यशास्त्र में स्थापित मान्यता है. उस आलोक में बहुत ही सुन्दर प्रयास हुआ है. इस अभिजात्य अभिरुचि को बनाये रखियेगा, क्योंकि आपके सामन्य रचनाकर्म का यह अनायास तथा सहज विस्तार प्रतीत हो रहा है.

पुनः बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ

Comment by राजेश 'मृदु' on June 3, 2013 at 6:16pm

बड़ी सघन अभिव्‍यक्ति है, सादर

Comment by रविकर on June 3, 2013 at 4:39pm

दर्शन शास्त्र के दर्शन-
शुभकामनायें-

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 3, 2013 at 2:20pm

Abid ali mansoori जी भाई साहब बहुत बहुत शुक्रिया आपका इस हौसला-आफ़जाई के लिये,,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on June 3, 2013 at 2:19pm

आदरणीय,,,,,Dr Ashutosh Vajpeyee जी भाई साहब आपका यह स्नेह मिला,,,आपको दिल से नमन,,,,,,

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on June 3, 2013 at 2:13pm

बधाई हो बन्धु

Comment by Abid ali mansoori on June 3, 2013 at 1:43pm
सुन्दर रचना

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
10 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service