For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तुम, मेरी पहचान !

                              तुम, मेरी पहचान !

            

                 

             तुम अति-सुगम सरल स्नेह से मेरी

                                            प्रथम पहचान

             मेरे   कालान्तरित   काव्य   की

             अंतिम कड़ी,

             गीतों की गमक में

             छंद  और  लय   बने ....

             पूर्णिमा की रात मेरे  लिए  तुम

             चमकते  तारों  का  कारण हो  ।

             सुनती हूँ, तुम देस-परदेस

             रात के उलझे पहरों में

             मुझको,

             मेरी परिकीर्ण पीड़ा की

             परिकल्पना  को जी रहे हो ।

             तुम्हारे अपने दर्द कुछ कम हैं क्या ?

             .......कि मेरी पीड़ा से आकृष्ट,

             तुम  चिंतित  क्षण-क्षण,

             निष्कपट मित्र-भाव से मेरे

             घिरे हुए असीम को जी रहे हो ?

             मैं यहाँ अपनी पीड़ा के

             अंतवर्ती विस्तार में अटकी,

             तुम

             मेरी पीड़ा की पराकाष्ठा से अनभिज्ञ,

             इस   बहती   पीड़ा   की   प्रसमता   में,

             उसकी गति में,  

             तुम रूकावट न बनो ।

            

             नये   प्रतीकों  और  बिम्बों  से  बहलाते,

             मुझको जीवितता का आभास न दो,

             कि मैं इस पथ पर पहले से पराभूत,

             निज   मान्यताओं   को   कुचल-कुचल,

             सर्व-सामान्य   का   अभिनय करती

             जीने के कितने स्वांग रचा चुकी हूँ,

             और सच, अब यह क्रिया

             अभिनय नहीं,

             मेरे जीने की कटु वास्तविकता है ।

        

             मान्यताओं का चुनाव, और

             सर्व-सामान्य जीवन का

                     जन्म-सिद्ध अधिकार

             अब मेरे परास में नहीं है ।

             तुम  अपनी  नींदों  को   यूँ

             रात की स्याही में डुबो कर

             मेरी पीड़ा से सम्बद्ध, इस तरह

             रह-रह  कर  और  मत   गलो ।

                          ------                             

                                                      - विजय निकोर

                                                         

Views: 1009

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on May 2, 2013 at 2:04am

श्रद्धेय विजय जी, मैं इसके क़ाबिल ही नहीं हूँ कि आपकी कविता के भावार्थ पर अपनी राय दे सकूँ....लेकिन मैं इसकी सुंदरता को अपने में समेट सकता हूँ और इसकी गहराईयों को नाप न सकूँ तो भी डुबकी लगाने से मुझे कौन रोक सकता है.....एक बेहद आनंददायक रचना को पढ़ने की खुशी से सराबोर हो गया हूँ.....शब्द नहीं हैं आपका आभार व्यक्त करने के लिये.

Comment by बृजेश नीरज on May 1, 2013 at 10:27pm

आदरणीय आपकी लेखनी का जादू यहां चरम पर है। आपने जो रचा है उसे बार बार पढ़ने का मन कर रहा है। इसे अपने संग्रह में रख लिया है। आपको बधाई इस अप्रतिम रचना हेतु!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on May 1, 2013 at 9:34pm

मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति 

हार्दिक बधाई आदरणीय विजय जी 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 1, 2013 at 9:17pm

आ0 विजय निकोर जी, वाह! सर जी, जीने के कितने स्वांग रचा चुकी हूँ,
और सच, अब यह क्रिया
अभिनय नहीं,
मेरे जीने की कटु वास्तविकता है । अतिगंभीर भाव और अतिसुन्दर रचना । हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by coontee mukerji on May 1, 2013 at 6:16pm

मैं यहाँ अपनी पीड़ा के

             अंतवर्ती विस्तार में अटकी,

             तुम

             मेरी पीड़ा की पराकाष्ठा से अनभिज्ञ,

             इस   बहती   पीड़ा   की   प्रसमता   में,

             उसकी गति में,  

             तुम रूकावट न बनो ।...........जब पीड़ा आत्मा की अत्यधिक गहराई तक पहूँच जाती

है तो उस पीड़ा की पराकाष्ठा रूकावट न बनकर अत्यधिक आनंद की अनुभूति देने लगती है....

यह पीड़ा भी भाग्यशाली लोगों को ही मिलता है ....जो हमें ईश्वर तक जाने का मार्ग प्रशस्त

करता है... प्रिय मित्र विजय जी , आपने अत्यंत श्रेष्ठ एवम सात्विक रचना हमें दी है....धन्यवाद जैसे शब्द इस की गरिमा को लघुता को प्रदर्शित करेगा ... मैं नहीं चाहती .

साधुवाद /कुंती .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 1, 2013 at 5:09pm

aadarniya vijay sir ji 

sundar bhaav yukt rachna hetu badhai. 

saadr 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service