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सुन्दर प्रयास
सादर बधाईआदरणीय मनोज जी
आदर्णीय सौरभ पाण्डेय जी...सादर आभार आपका जो आपने मेरी रचना मे कमी को उजागर किया. मैने उन कमियों को दूर करने का प्रयास किया है....सादर
कहते है कविराय, नही उनमे है प्रीति
प्यादों मे तकरार , कराती है राजनीति... इस तरह से कुण्डलिया का अंत नहीं हो सकता. रोला वाला भाग रोला के नियमों क अनुसार ही होगा.
बाकी आपका प्रयास अच्छा है. सतत प्रयासरत रहें. एक बात और सोंटा सही शब्द है न कि शोंटा. हम अक्षरियों के प्रति संवेदन शील रहें.
शुभकामनाएँ व बधाइयाँ.. .
आदरणीय मनोज जी सादर, सुन्दर कुण्डलिया छंद लिखे हैं किन्तु मुझे लगता है पोस्ट करने की शीघ्रता में आप ठीक से मात्रा गणना नहीं कर पा रहे हैं. अंतिम छंद यदि सुधार कर दिया जाय तो क्या ही सुन्दर निखरेगा. सुन्दर भाव प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.
तीनो कुंडलिया सुन्दर और सामयिक, हार्दिक बधाई श्री मनोज शुक्ला जी | "जन जन तो त्रस्त" का एक बार पुनः अवलोकन करे
शायद आप "जन जन तो है त्रस्त" लिखना चाह रहे थे |
कुण्डलियां अच्छी हैं!आ० मनोज शुक्ला जी ///बधाई स्वीकारे। सादर
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