For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक खवाब जो देखा था
सपने जो आँखों में संजोये थे
अरमान जो दिल में बरसे थे
तरसे थे सारी रातें
बरसे थे आँखों से ये दरिया
तड़पी थी ये रूहें
बुलंद थे ये होंसले
तेज थी आँखों में
छूना था आस्मां को
पाना था सारा जहाँ
जीना था उन सपनों को
करना था कुछ ऐसा
बन कर दिखाना था सरे जहाँ को
करनी थी दुनिया मुट्ठी में
कुछ कर गुजरने की तमन्ना थी
कुछ बदलने की आंस थी
कुछ ऐसी ख्वाइश थी

बस देखा एक स्वप्न था
आँखों जो तरसा था
मन में जो उमड़ा था
ऐसी कुछ आरजू थी
कुछ चाहत थी

ना जाने कैसे बीते थे वो
ज़माने इस चाहत में
ओझल जो होने ना पे

ना जाने क्यूँ
होते हैं ये ख्व्वाब कुछ ऐसे
जो कभी पुरे होने ना पे
क्यूँ बुन लिए जाते हैं
ना जाने क्यूँ

रिश्तों की डोर
खून के रिश्ते
ना जाने कब घुटन देने लगे
ना जाने कब चेहरा खो गया
इस भेड़ चाल का कब हिस्सा बनवा दिया गया
इतने आगे आ खड़े हो गए पर बुलंदियों को छू ना पे
बस एक तमन्ना अधूरी रह गई
धुंधला गए सपने

प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बनवा दिया गया
अपने ही ना समझ पाए
रिश्वत और काले धन ने ना जाने कितने ने खरीद लिए वो स्वप्न
अमूल्य थे वो सपना जो बिक ना पाए

बस एक चाहत थी
एक तमन्ना थी

कुछ ऐसी ख्वाइश थी

बस देखा एक स्वप्न था 
आँखों जो तरसा था 
मन में जो उमड़ा था
ऐसी कुछ आरजू थी 
कुछ चाहत थी


"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 614

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 8, 2013 at 5:29pm
आदरणीय..रोहित जी, सच मन में बड़ी पीड़ा होती है जब स्वप्न टूट जाता है तो.."रिश्तो की डोर खून के रिश्ते, ना जाने कब घुटन देने लगे...यर्थात्ता की अनुभूति कराती आपकी पंक्तियां....हार्दिक शुभकामनाऐं
Comment by Rohit Dubey "योद्धा " on June 8, 2013 at 4:41pm

Ky baat hai Rohitjee man bhar aaya! Ati sundar rachna


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2013 at 6:01pm

ख्वाहिशें जब हाशियों पे आके दम तोडती हैं तो मन छटपटाता है यही अन्तर्द्वन्द  आपकी लेखनी में देखने को मिला ,बढ़िया प्रयास है पोस्ट करने से पहले प्रीव्यू में टंकण मिस्टेक देख कर ठीक कर लिया करें । बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by garima kanskar on April 12, 2013 at 8:53pm

very nice

Comment by vijay nikore on April 12, 2013 at 8:21pm

आदरणीय रोहित जी:

 

//ना जाने क्यूँ
होते हैं ये ख्व्वाब कुछ ऐसे
जो कभी पुरे होने ना पे
क्यूँ बुन लिए जाते हैं//

 

भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति के लिए बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 12, 2013 at 7:51pm

आँखों में बसे खूबसूरत स्वप्नों का ज़िंदगी की कटुता के सामने घुटने टेक कर आँखों से गुम हो जाना और मन में अधूरेपन की एक चुभती कसक बन रह जाना ...बहुत मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है आ० रोहित जी .. हार्दिक बधाई इस अभिव्यक्ति पर 

कृपया पुनः अवलोकन कर  टंकण त्रुटियों को सुधार लें 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 12, 2013 at 5:16pm

मन में विचारों का द्वन्द, सब कुछ पा लेने कि तड़फ, चाहत को धरातल नहीं मिलने का अफसोस कहे

या फिर वह प्राणी जो विचारों में खोया रहता है, पर प्रयत्न नहीं करता है |  प्रस्तुति के लिए बधाई | 

Comment by अशोक कत्याल "अश्क" on April 11, 2013 at 8:46pm

क्या खूब ,
सादर ,
अश्क

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service