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तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा

तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा

एक, नन्हा सा दिया,
बस ठान बैठा, मन में हठ
अंधियार, मैं रहने न दूं,
मैं ही अकेला, लूं निपट

मन में सुदृढ़ संकल्प ले
जलने लगा वो अनवरत,
संत्रास के झोकों ने घेरा
जान दुर्वल, लघु, विनत

दूसरा आकर जुड़ा,
देख उसको थका हारा
धन्य समझूं, मैं स्वयं को
जल मरूं, पर दूं सहारा

इस तरह जुड़ते गए,
और श्रृंखला बनती गयी
निष्काम,परहित काम आयें
भावना पलती गयी

एक होता यदि अकेला,
अभितप्त होकर टूट जाता
मिल बनें, अविजेय दल
सघन तम भी मात खाता

पंक्ति का प्रत्येक मानिक,
नए युग की नयी शक्ति
निश्वार्थ सेवा में समर्पित
मन संजोये, त्याग, भक्ति

तम से लड़ता रहा, दीप जलता रहा,
इक दूसरे को सहारा दिए
ज्योतिमय हो जगत और फैले खुशी
शुभकामनाएं, ह्रदय में लिए

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Comment

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Comment by DEEP ZIRVI on December 22, 2010 at 8:24pm

BESHKK

मिल बनें, अविजेय दल
सघन तम भी मात खाता

Comment by Lata R.Ojha on December 21, 2010 at 2:28pm

ek nanhe se diye ke dwaara aapne bahut hi badi baat kah di ..waah!

Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:45pm
bahut acchi rachna..waah
Comment by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 1:39pm
'इस तरह जुड़ते गए,
और श्रृंखला बनती गयी
निष्काम,परहित काम आयें
भावना पलती गयी'

श्रीप्रकाश जी शब्दों का सुन्दर कारवाँ ,अभिभूत करती कविता बधाई |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 21, 2010 at 5:40pm
एक, नन्हा सा दिया,
बस ठान बैठा, मन में हठ
अंधियार, मैं रहने न दूं,
मैं ही अकेला, लूं निपट,

बेहद सटीक काव्य कृति, छोटा भी यदि कोई हो और कुछ अच्छा कार्य करने का दृढ निश्चय कर लेता है तो वह कर ही लेता है, एक सन्देश भी छुपा है इस कविता मे, बधाई श्रीमान, आगे भी आपकी रचनाओं का इन्तजार रहेगा |

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