For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है "ग़ज़ल"

इक ताज़ा ग़ज़ल पेशेखिदमत है आपके जानिब

 

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला शिकवा नहीं करता

सभी के दिल में वो अपना ठिकाना ढूँढ लेता है

 

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है

 

उजालों ने कभी उस दीप की कीमत नहीं जानी

जो खुद जलने अँधेरों का खजाना ढूँढ लेता है 

 

संदीप पटेल “दीप”

Views: 786

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 9:32pm

आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर जी सादर प्रणाम 

ग़ज़ल को सराहने और उत्साह बढाने हेतु आपका बहुत बहुत आभार 

स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 17, 2013 at 12:07am

एक उम्दा कोशिश के लिए बधाई और शुभेच्छाएँ... .

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 10:57pm

आदरणीय संदीप भाई सादर

आपकी सराहना और हौसलाफजाई के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

सादर आभार आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 10:56pm

आदरणीय मित्रवर अरुण भाई सादर

आपसे ओ बी ओ फॉर्मेट में प्रतिक्रिया पाना सुखद अनुभूति दे रहा है

ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 10, 2013 at 7:27pm

बेहतरीन अश'आर संदीप भाई.. मगर जो शे'र सबसे ज़्यादा पसंद आया..

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है -- वाह साब वाह.. बधाई हो..!

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 10, 2013 at 5:54pm

वो यारों का कोई किस्सा पुराना ढूँढ लेता है

ग़मों में मुस्कुराने का बहाना ढूँढ लेता है .... वाह भाई वाह बहुत जोरदार मतला हुआ है.

 

फकीरो पीर पैगम्बर खुदा क्या आदमी है क्या  

बुराई हर किसी में ये ज़माना ढूँढ लेता है............आहा भाई आह निकाल दी आपने जवाब नहीं आपका

 

मुसलसल चोट खाता है मगर आशिक है क्या कीजे

मुहब्बत करने को मौसम सुहाना ढूँढ लेता है ..... भाई दिल की बात कह दिया क्या ?

 

बुरी आदत है उसकी एक का दो चार करने की

पडोसी पर नज़र रख के फ़साना ढूँढ लेता है .... हाहाहा क्या बात कह दी भाई

 

अहम् झूठा नहीं करता गिला शिकवा नहीं करता

सभी के दिल में वो अपना ठिकाना ढूँढ लेता है ... मस्त मस्त मस्त

 

उसे क्या देखते हो तुम हिकारत भर के आँखों में  

ये वो बच्चा है जो कूड़े में खाना ढूँढ लेता है .... वाह वाह वाह भाई मज़ा आ गया

 

उजालों ने कभी उस दीप की कीमत नहीं जानी

जो खुद जलने अँधेरों का खजाना ढूँढ लेता है ... भाई जो खुद जलने मुझे लगता है जलके लिखा होगा आपने.

मित्रवर इस शानदार ग़ज़ल हेतु मेरी ओर से दिल से भर भर के ढेरों दाद ढेरों बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:46pm

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम

इस हौसलाफजाई के लिए आपका बहुत बहतु शुक्रिया

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सादर आभार आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:45pm

आदरणीया सावित्री जी सादर

इस सराहना के लिए आभार आपका

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:45pm

परम आदरणीय तिलक सर जी सादर प्रणाम

आपकी दाद मिलना मेरे लिए एक तोहफा है

आपकी सराहना पाना लेखन के लिए निश्चित तौर पे कैटेलिस्ट की तरह है

आपका बहुत बहुत शुक्रिया और सादर आभार

ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 10, 2013 at 5:42pm

आदरणीया मीना जी सादर

ग़ज़ल को सराहने हेतु आभार आपका

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम चंद गुप्ता जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, सुंदर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय।"
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी, सबसे पहले ग़ज़ल पोस्ट करने व सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें।"
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल 2122 1212 22..इश्क क्या चीज है दुआ क्या हैंहम नहीं जानते अदा क्या है..पूछ मत हाल क्यों छिपाता…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई अमरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए आभार।"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन  के लिए आभार।"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service