अभिचार सा
करता
छिड़कता जल
चला था,
शून्य पथ
धर अफीमी
रूप कोई
रात थी
बेहद सुरत
कुछ धुरंधर
मेघ भी तो
कर गए
नि:शब्द ही
गलफड़े भर
श्वांस भरके
थे खड़े
कुछ दर्द भी
ढह ना पाई
रोशनी पर
ना हुई
पथ से विपथ
करबले की
ओर बढ़ते
पांवों में थी
जो शपथ
Comment
मेघ भी तो
कर गए
नि:शब्द ही
गलफड़े भर
श्वांस भरके
थे खड़े
कुछ दर्द भी
ढह ना पाई
रोशनी पर
ना हुई
पथ से विपथ
करबले की
ओर बढ़ते
पांवों में थी
जो शप
bahut sundar shabd jha ji
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या बात है सुन्दर,,,,,,,,,,,बधाई,,,,,,,,,,,,
धर अफीमी
रूप कोई
रात थी
बेहद सुरत
कुछ धुरंधर
मेघ भी तो
कर गए
नि:शब्द ही
गलफड़े भर
श्वांस भरके
थे खड़े
कुछ दर्द भी---बहुत सुंदर सजीव चित्र सा खींच दिया आंखों के समक्ष सुंदर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई|
यह तो अच्छी लयबद्ध रचना है आदरणीय-
सुन्दर भाव-
आभार
बहुत उम्दा ... बधाई राजेश जी
हार्दिक आभार डॉ0 खरे साहब, राम शिरोमणि जी एवं आदरणीय पवन अंबा जी
sunder rachna badhai
अभिचार सा
करता
छिड़कता जल
चला था,
शून्य पथ
धर अफीमी
रूप कोई
रात थी!!!!!!!
kyaa baat hai bhai ji .........bahot badiya
पथ से विपथ
करबले की
ओर बढ़ते
पांवों में थी
जो शपथ....sundar abhivaykti....
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