उफ्फ ये स्वप्न!!
हृदय विदारक
कैसे जन्मा
सुषुप्त मन में ?
रेंगती संवेदनाएं
कंपकपाएँ
जड़ जमाएं
भयभीत मन में
अतीत है या
भावी दर्पण
उथल पुथल है
मन उलझन में
गर वर्तमान है
बन के प्रश्न
खड़ा हुआ
नेपथ्य तम में
क्या स्वप्न जो
नयनों में पले
वो भी जले
आतंकी अगन में
क्यों याद नही
रंग सिन्दूरी
बस रक्त रंग ही
घूमता ज़हन में
जो घुला मेरी
रग रग में
क्या वही
जन्मता
सुषुप्त मन में?
*****************
(एक बार कश्मीर में आतंक के साये में पली बालिकाओं से बात करने का मौका मिला उनकी बातों से प्रेरित होकर उस वक्त इस कविता का जन्म हुआ था जो आज मेरी एक डायरी में मिली तो आप सब से साझा कर रही हूँ )
Comment
वेदिका जी हक़ीक़त से सपने भी डरते हैं उन्हीं के सुर में सुर मिलाते हैं आतंक का साया उनको मनपसंद सपने तक देखने की इजाजत नही देता बस यही कुछ भाव समेटे हैं इन पंक्तियों में आपको पसंद आई रचना हार्दिक आभार
आदरणीय सौरभ जी आपको कविता पसंद आई उसके मर्म ने आपके दिल को छुआ मेरे लेखन को सार्थकता मिली दिल से आभारी हूँ
आदरणीय राजेश कुमारी जी बहुत दुखद छट पटा टी पंक्तियो को उकेरा आपने
उफ्फ ये स्वप्न!!
हृदय विदारक
कैसे जन्मा
सुषुप्त मन में ?......... समवेदन शील मन से निकली समवेदनाएं ....
शुभकामनायें !
आदरणीया राजेशकुमारीजी, आपकी संवेदनशीलता से मन आप्त हुआ जाता है.
रंक्त-रंजित भूमि पर सिन्दूर का स्वप्न भी कितना कष्टदायी है ! एक बेहतरीन कविता के लिए हृदय से बधाई. ..
हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण जी आपने सही कहा जब कोई बात गहरे तक असर करती है उसका प्रतिबिंब स्वप्न में भी दिखाई देता है
किसी से अति संवेदन शील मसले पर वार्ता हो, तो अंतर्मन में जो मनःस्थिति बनती है,
प्रिय संदीप जी आपने सही कहा जहाँ दिन रात रक्त का रंग ही नजरों के सामने हो उसे सिंदूर का रंग तो स्वप्न में भी दिखाई नही देगा
बस यही सब भाव लिखने के लिए मेरा मन बाध्य हो गया था हार्दिक आभार आपका
गर वर्तमान है
बन के प्रश्न
खड़ा हुआ
नेपथ्य तम में
क्या स्वप्न जो
नयनों में पले
वो भी जले
आतंकी अगन में
क्यों याद नही
रंग सिन्दूरी
बस रक्त रंग ही
घूमता ज़हन में
क्या दृष्टिकोण रहा होगा
क्या दशा रही होगी हृदय की
इस सुंदर मार्मिक रचना हेतु बधाई आदरणीया
राम शिरोमणि पाठक जी रचना आपको पसंद आई हार्दिक आभार आपका
आदरणीय विजय निकोर जी हार्दिक आभार आपको रचना पसंद आई
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