For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उफ्फ ये स्वप्न!!

हृदय विदारक

कैसे जन्मा

सुषुप्त मन में ?

रेंगती संवेदनाएं  

कंपकपाएँ

जड़ जमाएं  

भयभीत मन में

अतीत है या

भावी  दर्पण

उथल पुथल है

मन उलझन में

गर वर्तमान  है 

बन के  प्रश्न

 खड़ा हुआ 

नेपथ्य तम में 

क्या स्वप्न जो  

 नयनों में पले

वो भी जले   

आतंकी अगन में  

क्यों  याद नही

रंग सिन्दूरी    

बस रक्त रंग ही

घूमता ज़हन में

जो घुला    मेरी  

 रग रग में

क्या वही

 जन्मता

सुषुप्त मन में?

***************** 

(एक बार कश्मीर में आतंक के साये में पली बालिकाओं से बात करने का मौका मिला उनकी बातों से प्रेरित होकर उस वक्त इस कविता का जन्म हुआ था  जो आज मेरी एक डायरी में मिली तो आप सब से साझा कर रही हूँ )

Views: 780

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 6:34pm

वेदिका जी हक़ीक़त से सपने भी डरते हैं उन्हीं के सुर में सुर मिलाते हैं आतंक का साया उनको मनपसंद सपने तक देखने की इजाजत नही देता बस यही कुछ भाव समेटे हैं इन पंक्तियों में आपको पसंद आई रचना हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 6:30pm

आदरणीय सौरभ जी आपको कविता पसंद आई उसके मर्म ने आपके दिल को  छुआ मेरे लेखन को सार्थकता मिली दिल से आभारी हूँ 

Comment by वेदिका on February 19, 2013 at 4:05pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी बहुत दुखद छट पटा टी पंक्तियो को उकेरा आपने 

उफ्फ ये स्वप्न!!
हृदय विदारक
कैसे जन्मा
सुषुप्त मन में ?......... समवेदन शील मन से निकली समवेदनाएं ....

शुभकामनायें !  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 19, 2013 at 3:29pm

आदरणीया राजेशकुमारीजी, आपकी संवेदनशीलता से मन आप्त हुआ जाता है.

रंक्त-रंजित भूमि पर सिन्दूर का स्वप्न भी कितना कष्टदायी है ! एक बेहतरीन कविता के लिए हृदय से बधाई. ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 2:44pm

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण जी आपने सही कहा जब कोई बात गहरे तक असर करती है उसका प्रतिबिंब स्वप्न में भी दिखाई देता है 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 19, 2013 at 2:22pm

किसी से अति संवेदन शील मसले पर वार्ता हो, तो अंतर्मन में जो मनःस्थिति बनती है,

तत्पश्चात यदा कद जो स्वान में चित्र दिखाई देता है, या यूँ कहे जो जहन में बात उतर 
कर रह रह कर सुशुप्त मस्तिस्क में उभर आती है, उसका अच्छा वर्णन किया है, बधाई 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 12:38pm

प्रिय संदीप जी आपने सही कहा जहाँ दिन रात रक्त का रंग ही नजरों के सामने हो उसे सिंदूर का रंग तो स्वप्न में भी दिखाई नही देगा
बस यही सब भाव लिखने के लिए मेरा मन बाध्य हो गया था हार्दिक आभार आपका

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 19, 2013 at 12:35pm

गर वर्तमान  है 

बन के  प्रश्न

 खड़ा हुआ 

नेपथ्य तम में 

क्या स्वप्न जो  

 नयनों में पले

वो भी जले   

आतंकी अगन में  

क्यों  याद नही

रंग सिन्दूरी    

बस रक्त रंग ही

घूमता ज़हन में

क्या दृष्टिकोण रहा होगा
क्या दशा रही होगी हृदय की
इस सुंदर मार्मिक रचना हेतु बधाई आदरणीया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 12:33pm

राम शिरोमणि पाठक जी रचना आपको पसंद आई हार्दिक आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 19, 2013 at 12:32pm

आदरणीय विजय निकोर जी हार्दिक आभार आपको रचना पसंद आई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
7 hours ago
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
19 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Jul 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service