कंधों पर तू ढो रहा ,क्यों कागज का भार|
आरक्षण तुझको मिले,पढ़ना है बेकार||-------(व्यंग्य)
मन कागज पर जब चले ,होकर कलम अधीर|
शब्द-शब्द मिलते गले ,बह जाती है पीर||
भावों-शब्दों में चले,जब आपस में द्वंद|
मन के कागज पर तभी,रचता कोई छंद||
टूटे रिश्ते जोड़ दे ,सुन, नन्हीं सी जान|
कोप सुनामी मोड़ दे ,बालक की मुस्कान||
फूलों से साबित करें ,कैसी है ये रीत|
कागज का दिल दे रहे ,कैसे समझें प्रीत||
रिश्ते कागज पर बने ,कागज पर ही भस्म|
बिन फेरों के शादियाँ ,कैसी है ये रस्म||
तन की पाती सब पढ़ें ,मन की पढ़ें न कोय|
जो मन की पाती पढ़ें ,तो दुःख काहे होय||
अरमानो को बाँधती,रस्मों की जंजीर|
भीगे कागज पर लिखी ,नारी की तक़दीर||
कागज ही से धन मिले ,कागज ही से ज्ञान|
वृक्षों से कागज बने , कीमत तू पहचान||
पहले पत्तों पर लिखे ,फिर कागज पर ग्रन्थ|
अब कंप्यूटर पर दिखे ,लेखन के नव पंथ ||
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Comment
आदरणीय गुरु जी सलिल जी आपके मार्ग निर्देशन में दोहों को दुरुस्त किया है |
हार्दिक आभार प्रवीण मलिक जी आपको दोहे रुचिकर लगे
राजेश कुमारी जी सादर ,
बहुत ही अछे दोहों से सजी रचना ... बधाई स्वीकारे जी
तुषार राज रस्तोगी जी हार्दिक आभार आपका आपको दोहे पसंद आए
विंध्येश्वरि प्रसाद जी हार्दिक आभार आपका आपको दोहे पसंद आए | मेरा लिखना सार्थक हुआ| आचार्य सलिल जी कि बातों से पूर्णतः लाभान्वित हुई हूँ मेरी तरह आप सभी महसूस कर रहे होंगे की साहित्यिक सागर बहुत गहरा है इसमे हमे बहुत गंभीरता से उतरना है थोड़ी थोड़ी गलतियाँ ही आगे जाकर बड़ी बन जाती हैं अतः अगर हमे अगली पीढ़ी को एक स्पष्ट व निर्विकार साहित्य देना है तो उसकी बारीकियां समझनी होंगी , आप सब सुधि जनों का सानिद्ध्य और माँ सरस्वती का आशीष यूँ ही मिलता रहे मंगल कामना |
आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी हार्दिक आभार आपका आपको दोहे पसंद आए | मेरा लिखना सार्थक हुआ|
वेदिका जी आपको दोहे पसंद आए हार्दिक आभार आपका|
राम शिरोमणि पाठक जी आपको दोहे पसंद आए हार्दिक आभार आपका|
प्रिय संदीप आपको दोहे पसंद आए हार्दिक आभार आपका| मेरा लिखना सार्थक हुआ आचार्य सलिल जी कि बातों से पूर्णतः लाभान्वित हुई हूँ मेरी तरह आप सभी महसूस कर रहे होंगे की साहित्यिक सागर बहुत गहरा है इसमे हमे बहुत गंभीरता से उतरना है थोड़ी थोड़ी गलतियाँ ही आगे जाकर बड़ी बन जाती हैं अतः अगर हमे अगली पीढ़ी को एक स्पष्ट व निर्विकार साहित्य देना है तो उसकी बारीकियां समझनी होंगी , आप सब सुधि जनों का सानिद्ध्य और माँ सरस्वती का आशीष यूँ ही मिलता रहे मंगल कामना |
आदरणीय विजय निकोर जी आपको दोहे पसंद आए हार्दिक आभार आपका| मेरा लिखना सार्थक हुआ आचार्य सलिल जी कि बातों से पूर्णतः लाभान्वित हुई हूँ आप सब सुधि जनों का सानिद्ध्य और माँ सरस्वती का आशीष यूँ ही मिलता रहे मंगल कामना
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