For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्यों मिल गयी संतुष्टि

उन्मुक्त उड़ान भरने की

जो रौंध देते हो पग में

उसे रोते , कराहते

फिर भी मूर्त बन

सहन करना मज़बूरी है

क्या कोई सह पाता है रौंदा जाना ???

वो हवा जो गिरा देती है

टहनियों से उन पत्तियों को

जो बिखर जाती हैं यहाँ वहाँ

और तुम्हारे द्वारा रौंधा जाना

स्वीकार नहीं उन्हें

तकलीफ होती है

क्या खुश होता है कोई

रौंधे जाने से ??

शायद नहीं

बस सहती हैं और

वो तल्लीनता तुम्हारी

ओह याद नहीं अब तुम्हें

भेदती है अब वो छुअन

जो कभी मदमुग्ध करती

तुम्हारी ऊब से खुद को निकालती

अब प्रतीक्षा - रत हैं वो

खुद को पहचाने जाने का

टूटकर भी

खुशहाल जीवन बिताने का

क्या जीने दोगे तुम उन्हें

उस छत के नीचे अधिकार से

उनके स्वाभिमान से

या रौंधते रहोगे हमेशा !!!

अपने अहंकार से

इस पुरुषवादी समाज में

आखिर कब मिल पायेगी

उन्हें उन्मुक्तता ???

- दीप्ति शर्मा

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 690

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by यशोदा दिग्विजय अग्रवाल on May 6, 2013 at 10:17am

क्या..


मिल जायेगी

उन्हें उन्मुक्तता ???

शायद...

यदि हाँ...

तो कब तक

होगी उन्मुक्त

आज की नारी

सादर......

Comment by deepti sharma on February 16, 2013 at 6:50pm

आदरणीय  लक्ष्मन जी .....आदरणीय  अजय जी ...आदरणीया नीलिमा जी ... बहुत आभार .. यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें 

Comment by deepti sharma on February 16, 2013 at 6:48pm

आदरणीय दिनेश जी  .. आदरणीय राजेंद्र जी .. आदरणीया उपासना जी ... बहुत आभार .. यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें 

Comment by deepti sharma on February 16, 2013 at 6:46pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी ...आदरणीय विजिय निकोर जी ...आदरणीय गणेश बागी जी ..  बहुत आभार .. यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें 

Comment by deepti sharma on February 16, 2013 at 6:41pm

आदरणीय सौरभ जी ,  मैं इस कविता को और बेहतर लिखने की कोशिश करूँगी  आपको आप यूँ ही मार्गदर्शन करते रहें आभार ..

Comment by Neelima Sharma Nivia on February 15, 2013 at 7:14pm

 सुन्दर  प्रस्तुति 

Comment by Dr.Ajay Khare on February 15, 2013 at 11:30am

touching having deep feel badhai 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 15, 2013 at 11:30am

रोंदा जाना कतई स्वीकार नहीं हो सकता । भारत की पुरातन वेद पुराण इस प्रकार की इजाजत भी 

नहीं देते,यह तो मध्युगीन आई विक्रति का परिणाम है, जिसे दूर करने के लिए महिलाओं को जागरूक
करना होगा, इस द्रष्टि से यह रचना सुंदर है।सवेदनशील सुन्दर रचना के लिए बधाई दीप्ति शर्मा जी ।
Comment by upasna siag on February 14, 2013 at 6:16pm

बेहद संवेदन शील रचना दीप्ति जी ....

Comment by राजेन्द्र सिंह कुँवर 'फरियादी' on February 14, 2013 at 11:39am

दीप्ति जी बहुत ही बहुत बड़ी संवेदना के साथ आपके शव्दों में जो आधुनिक की ये अठखेलियाँ नजर आती है वास्तव में ये सोचनीय विषय बनता जा रहा है बहुत उत्कृष्टता के साथ उकेरा है आप ने इस मन में उठते हुए इन कुंठित होते हुए भावों को 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
11 hours ago
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service