For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - आप खुश हैं कि तिलमिलाए हम

एक और ताज़ा गज़ल आपकी खिदमत में पेश करता हूँ... लुत्फ़ लें ...

आप खुश हैं, कि तिलमिलाए हम |
आपके कुछ तो काम आए हम |

खुद गलत, आपको ही माना सहीह,
जाने क्यों आपको न भाए हम |

आपके फैसले गलत कब थे,
और फिर, सब सगे, पराए हम |

दोस्तों ने भी कुछ कमी न रखी,
और खुद के भी हैं सताए हम |

हम पे इल्ज़ाम था मुहब्बत का,
पर खड़े क्यों थे सर झुकाए हम |

इल्मो-फन का लगा है इक बाज़ार,
लौटते हैं लुटे लुटाए हम |

शामियाने सी फितरतें अपनी,
उम्र भर धूप में नहाए हम |

नाम कम है, जियादा हैं बदनाम,
शाइरी तुझसे बाज़ आए हम |

पसे-आईना कोई है 'वीनस',
जिसको अब तक समझ न पाए हम |

Views: 612

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on February 16, 2013 at 8:14am

बहुत खूब श्री वीनस जी ! हर शेर बोल रहा है । 

 
शामियाने सी फितरतें अपनी,
उम्र भर धूप में नहाए हम |

नाम कम है, जियादा हैं बदनाम,
शाइरी तुझसे बाज़ आए हम |
 शामियाने के क्या कहने दिल लूट लिया हार्दिक बधाई !!
Comment by मोहन बेगोवाल on February 15, 2013 at 10:55pm

वीनस जी , 

आप का गज़ल कहने का अंदाज लाजवाब है, मुझे ये शेर बहुत अच्छा लगा 

शामियाने सी फितरतें अपनी,
उम्र भर धूप में नहाए हम |

Comment by विवेक मिश्र on February 7, 2013 at 8:52pm

क्या खूब ही गुफ्तगू करता हुआ मतला है.. वाह..
और फिर इस शे'र पर, कि-
/नाम कम है, जियादा हैं बदनाम,
शाइरी तुझसे बाज़ आए हम /

मैं तो यही कहूँगा कि, "जो है नाम वाला, वही तो बदनाम है..$". ढेरों दाद कबूलें.
जय हो..!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2013 at 9:10pm

क्या कहूँ .. कुछ समझ में नहीं आ रहा है. सही है, उदास एक और रंग है. किन्तु, आपके ग़ज़लकार को कभी इस रूप में नहीं देखा था.

आप खुश हैं, कि तिलमिलाए हम |
आपके कुछ तो काम आए हम |.. . . हुम्म .. .

इतना...... ??!!!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on February 6, 2013 at 7:09pm

जय हो

इक इक अशआर ग़ज़ब ढा रहा है
कह रहा है ये है ग़ज़ल ये है ग़ज़ल
इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये साहब

Comment by रविकर on February 6, 2013 at 5:59pm

आभार आदरणीय |
आनंदित हुआ ||

Comment by राजेश 'मृदु' on February 6, 2013 at 2:00pm

शामियाने सी फितरतें अपनी,
उम्र भर धूप में नहाए हम |

क्‍या बात है वीनस जी, आपकी गजल पढ़ना किसी पुरस्‍कार से कम नहीं, सादर


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 6, 2013 at 1:32pm

ग़ज़ल अच्छी कही है वीनस भाई,

शामियाने सी फितरतें अपनी,
उम्र भर धूप में नहाए हम |

क्या कहने भाई, शेर दिल तक उतर रहा है,

//खुद गलत, आपको ही माना सहीह,//
जरा बताइयेगा वीनस भाई |

एक खुबसूरत ग़ज़ल पर ढेरों दाद स्वीकार कीजिये |

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 6, 2013 at 10:55am

दोस्तों ने भी कुछ कमी न रखी,
और खुद के भी हैं सताए हम -- वाह भाई.. इसे कहते हैं अंदाज़े बयां..

शामियाने सी फितरतें अपनी,
उम्र भर धूप में नहाए हम -- ग़ज़ब की कहन...

एक के बाद एक शानदार ग़ज़लों से मन मोह रहे हैं आप! दिली मुबारकबाद है आपके लिए..

Comment by विजय मिश्र on February 6, 2013 at 10:21am

" शामियाने सी फितरतें अपनी,
        उम्र भर धूप में नहाए हम |"

 वीनसजी !

दायित्वधारीयों के जीवन पर एक सुन्दर बिम्ब प्रस्तुत करता हैं और सच है कि ऐसे लोग खुद के भी निगेह्वान होते हैं जमाने के साथ-साथ . पूरे नज्म में एक खास लोच है . खूबसूरत है . 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service