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ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण//डॉ प्राची

ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

गुलशन उजड़ने से

सहमीं हैं कलियाँ,

पंखों को सिमटाये

दुबकी तितलियाँ,

कर्कश सा चिल्लाये भंवरा क्यों हर क्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

बुझी दीप की लौ

है फैला अँधेरा,

प्रज्ञा को तम के

कलुष नें है घेरा,

खिले फिर से रश्मि करे तम का भक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

कैसे हुआ वक़्त

इतना विषैला,

क्यों कर हुआ है

मनस इतना मैला,

कैसे करें आज कलियों का रक्षण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

 

ध्वजा को झुका दो कि क्रंदित है जन गण,

सन्नाटा पसरा यूँ गुमसुम है प्रांगण.

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Comment by sanjiv verma 'salil' on December 31, 2012 at 6:04pm

आपकी आवाज़ में आवाज़ मिला कर कहना है:

तिरंगा नहीं है तुम्हारी बपौती,  
संवेदना है हमारी सगोती.

युग जैसा लंबा लगता है क्षण-क्षण
ध्वजा को झुक दो कि क्रंदित है जन-गण...


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Comment by Dr.Prachi Singh on December 31, 2012 at 4:35pm

लेखन कर्म को मान देने के लिए आभार आ. डॉ. अजय खरे जी 

Comment by Dr.Ajay Khare on December 31, 2012 at 4:16pm

jate huye saal me jo manjar tha aapne bya kiya aap dher sari badhai ki hakdaar he aap bahut sunder tarah se rachna ko sanklit karti he


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 31, 2012 at 3:13pm

हार्दिक आभार आदरणीया सीमा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 31, 2012 at 3:12pm

हार्दिक आभार प्रिय पियूष जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 31, 2012 at 3:12pm

रचना के अनुमोदन हेतु आभार श्याम नारायण वर्मा जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 31, 2012 at 3:11pm

हार्दिक आभार आ. अशोक जी, आपको भी नव वर्ष पर हार्दिक मंगल कामनाएं 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 31, 2012 at 3:10pm

अनुमोदन हेतु आभार शालिनी जी, जवाहर लाल जी 

Comment by seema agrawal on December 31, 2012 at 1:59pm

हर किसी के मन में उठ रही पीडा को स्वर देने के लिए बधाई एवं धन्यवाद प्राची ..........

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 31, 2012 at 1:25pm

दमदार रचना आदरणीय प्राची दी, बहुत बधाई.............!

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