For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"
अपनी कमजोरियों का शिकार आदमी,
बस दलीलों से है ज़ोरदार आदमी..

बारहा माफ़ करता रहे, वो खुदा,
गलतियां जो करे बार-बार.... आदमी...

कोई ख्वाहिश नहीं और फरिश्तो मेरी,
ढूँढने दो मुझे बस वो चार आदमी...

ऐसी हूरें और उसपे खुदा की नज़र,
कैसे जन्नत में पाए क़रार आदमी...

शक है नीयत पे तेरी ऐ वाइज़ मुझे,
करने जाता है क्या पांच बार आदमी??

फिर भला आप पंडित जी क्या कीजिये,
तोड़ कर फेंक दे ग़र जुन्नार आदमी...??

बुद्ध, ईशा, मुहम्मद, सफ़र कर चले,
रह गया सिर्फ बन के गुबार... आदमी...

सांस लेने की उसको भी फुर्सत तो दो,
इक खुदा और पीछे हज़ार आदमी...

जिंदगी हाशिये पर फिसलती गई,
आदमी ने किया दर-किनार आदमी...

हर तरफ ज़हन-ओ-दिल आह भरते हुए,
किस पे दिल का निकाले गुबार आदमी...

मौत लेगी हिसाब एक दिन सांस का,
जिंदगी ले के आया उधार आदमी...

जूझता..रेंगता..खुद घिसटता हुआ,
अपने ही आप में इक कतार आदमी...

एक लम्हे के एवज़ में इक सांस है,
कैसे छोड़ेगा ये रोज़गार आदमी...

Views: 713

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by rajneesh sachan on December 22, 2012 at 7:28am

सीमा जी पहले तो बहुत बहुत शुक्रिया ... आपने मुझे प्रेरित किया यहाँ जुड़ने और फिर पोस्ट करने के लिए ...  आप की मदद के बिना यह संभव नहीं था ..कुछ तो मेरा लापरवाह नेचर और कुछ जानकारी का अभाव, मगर आपने एक एक स्टेप ऐसे समझाया जैसे कोई अच्छा टीचर अपने स्टूडेंट्स को बार बार बताता है ...
और आपने हमेशा मेरे शायर और कवी मन का हौसला बढ़ाया है ....उसके लिए शब्दों का अभाव महसूस कर रहा हूँ।
:)

Comment by वीनस केसरी on December 22, 2012 at 12:19am

वाह जनाब क्या शानदार ग़ज़ल कही है
कई शेर हासिले ग़ज़ल के दावेदार हैं ......

मतला बेहद पसंद आया ......

अपनी कमजोरियों का शिकार आदमी,
बस दलीलों से है ज़ोरदार आदमी..

और यह अशआर भी ....

ऐसी हूरें और उसपे खुदा की नज़र,
कैसे जन्नत में पाए क़रार आदमी...

बुद्ध, ईशा, मुहम्मद, सफ़र कर चले,
रह गया सिर्फ बन के गुबार... आदमी...

सांस लेने की उसको भी फुर्सत तो दो,
इक खुदा और पीछे हज़ार आदमी...

मौत लेगी हिसाब एक दिन सांस का,
जिंदगी ले के आया उधार आदमी...


आपकी ग़ज़ल पढ़ कर ये तो पता चल रहा है कि यह तरही की ग़ज़ल है मगर गिरह का शेअर नहीं दिखा .... :)))))

Comment by राज लाली बटाला on December 21, 2012 at 9:23pm

मौत लेगी हिसाब एक दिन सांस का,
जिंदगी ले के आया उधार आदमी.. wah !! ji Bahut khoob रजनीश जी!

Comment by seema agrawal on December 21, 2012 at 8:48pm

 रजनीश जी यह आपकी पहली पोस्टिंग है इस मंच पर बधाई और शुभकामनाये .......

बार बार पढी आपकी ग़ज़ल सोच और विचार  के दरवाजे पर बेख़ौफ़ दस्तक देते अश'आर बहुत कुछ कह रहे हैं .....हर शेर अजूबा एक बार में संतुष्टि नहीं होती ......किस शेर को QUOTE करूँ  और किसे छोडूं 

अपनी कमजोरियों का शिकार आदमी,
बस दलीलों से है ज़ोरदार आदमी....मतले से ही असलियत पर प्रहार 

कोई ख्वाहिश नहीं और फरिश्तो मेरी,
ढूँढने दो मुझे बस वो चार आदमी..........वाह वाह ढूँढने दो मुझे बस वो चार आदमी अंततः बस यही चाहिए

जूझता..रेंगता..खुद घिसटता हुआ,

अपने ही आप में इक कतार आदमी.........बात इस तरह भी कही जाती है......

अभी कई बार पढूंगी और फिर हाज़िर होती हूँ  ...इस ग़ज़ल पर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service