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हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती...

तमाम उम्र भी ये बात हो नहीं सकती,
हमारी फिर से मुलाकात हो नहीं सकती।

हर एक ख्वाब की ताबीर मिल सके हमको,
कोई भी ऐसी करामात हो नहीं सकती।

गुरूब हो चुका मेरे नसीब का सूरज,
अब और नूर की बरसात हो नहीं सकती।

मैं रात हूँ मुझे सूरज मिले भला कैसे,
हो शम्स पास तो फिर रात हो नहीं सकती।

बजाय हमको मनाने के कह गये है वो,
के छोडो हमसे इल्तजात हो नहीं सकती।

कोई गुनाह बहुत ही कबीर है मेरा,
कबूल जिसकी मुनाजात हो नहीं सकती।

छुपा के रक्खूँ ये रिश्ता यूँ ही ज़माने से,
के हमसे इतनी एहतियात हो नहीं सकती।

हमारा दिल है के काबू में आ नहीं पाता,
तुम्हें भुलाने की शुरुआत हो नहीं सकती।

हयात पास है "इमरान" जब तलक तेरे,
ये खत्म तल्खी ए हालात हो नहीं सकती।

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Comment by इमरान खान on December 3, 2012 at 7:36pm
गुरूब - अस्त
शम्स - सूरज
इल्तजात - प्रार्थानायें
कबीर - बड़ा
मुनाजात - रात के अंधेरे में खुदा के सामने गुनाह कबूलकर माफी माँगना
हयात - जीवन
तल्खी' ए हालात - वर्तमान कठिनाइयाँ
Comment by इमरान खान on December 3, 2012 at 7:24pm
कवि - राज बुन्दॆली जी आपका हार्दिक आभार
Comment by इमरान खान on December 3, 2012 at 7:23pm
डॉ. सूर्या बाली शुक्रगुज़ार हूँ मैं आपका
Comment by इमरान खान on December 3, 2012 at 7:22pm
रविकर जी गजल पसंद करने का शुक्रिया

शब्दों के अर्थ मैं टिप्पणी के रूप में डाल दूँगा
Comment by इमरान खान on December 3, 2012 at 7:20pm
अरुन शर्मा साहब बहुत शुक्रिया आपका
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 6:34pm

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह क्या बात है,,,,,,,,,,,

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on December 3, 2012 at 3:37pm

अच्छी ग़ज़ल हुई इमरान भाई। हर एक शेर लाजवाब। दाद कुबूल करें !

Comment by रविकर on December 3, 2012 at 11:57am

बहुत बढ़िया भाई इमरान जी |
कुछ शब्दों के अर्थ भी लिख दें,
हम जैसे अधिक समझ पाएंगे उर्दू के ठेठ शब्दों को -
आभार ||

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 3, 2012 at 11:13am

 बहुत ही उम्दा ग़ज़ल है भाईजान ढेरों दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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