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तीन दुर्मिल सवैया छंद :-

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(1)
चित चॊर  चकॊर मरॊर दई, झकझॊर दई  पँसुरी पँसुरी,
कस माखनचॊर गही बहियां, चटकाइ दई अँगुरी अँगुरी,
फिर फॊरि दई छलिया गगरी,चिचुवाइ दई सगरी लँगुरी,
चुपचाप खड़ी हिय लाज गड़ी, सब दॆह भई चँगुरी चँगुरी,

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(2)
जरि अंग गयॆ सगरॆ सखि री,नहिं एक जरी हठकै गठरी,
सब बॊल सुहावन हैं बिरथा, कबहूँ न लहैं  सुधरैं शठ री,
कवि"राज"कहैं कलिकाल चढ़ा,मन-चाह बढ़ी बहुतै नठरी,
यमराज लिवाय चलॆ जइहैं, रहि जांय धरॆ  मुरदा  ठठरी,

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(3)
जब तॆ बिटिया बड़वार भई, उड़ि नींद गई  इन नैनन तॆ,
घर-वार मिलॆ परिवार मिलॆ,दिलदार मिलॆ वर ना मन तॆ,
कहुं चैन नहीं हमरॆ मन कॊ,बतियाइ लगी उठि रातन तॆ,
करतार हमार  गुहार सुना, हम दीन  हई  बहुतै  धन तॆ,

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Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 18, 2012 at 3:55am

Ashok Kumar Raktale आदरणीय,,,प्रणाम करता हूं आपको,,,आपकी प्रतिक्रिया से ऊर्जा मिली है,,,

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 12:31am

आदरणीय राज बुन्देली जी

                        सादर, तीनो ही दुर्मिल सवैया मन को मुग्ध कर रहे हैं. बधाई स्वीकारें.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 7, 2012 at 2:33pm

Saurabh Pandey आदरणीय,,,प्रणाम करता हूं आपको,,,आपकी प्रतिक्रिया से ऊर्जा मिली है,,,,,सच मानिये यह मेरा प्रथम प्रयास था जो आप सबके चरणॊ में समर्पित कर दिया है,,,,,,,,,,,अभी सीखने की शुरुआत है,,,,,,,,,,,,सादर नमन आपको,,,,,,,,,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2012 at 2:10pm

छंद - 1)  संयोग शृंगार का सुन्दर वर्णन हुआ है, राज साहब. बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें.

छंद 2) एक सांसारिक का आत्ममंथन उचित लगा. हार्दिक बधाई.

छंद 3) विवाह योग्य बेटी के साधनहीन किन्तु संवेदनशील पिता की मनोदशा का चित्रण करता छंद सुन्दर बन पड़ा है. कहुं चैन नहीं हमरॆ मन कॊ,बतियाइ लगी उठि रातन तॆ, इस पद में पिता-भाव की निरुपाय दशा निखर कर आयी है.

आपके इस प्रयास को मेरी बधाई.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 8:08pm

rajesh kumari ,,,,,  जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 7:46pm

राज बुन्देली जी इन छंदों की जितनी तारीफ करें कम होगी क्या लय ,क्या प्रवाह क्या शब्द सब जबरदस्त वाह वाह 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 1:39pm

योगराज प्रभाकर जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 3, 2012 at 1:23pm

कवि राज बुन्देली जी वाह !! एक से बढ़ कर एक छंद कहे हैं, पढ़ कर मन आनंदित हो उठा। मेरी हार्दिक बधाई  स्वीकारें मान्यवर।

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 12:18pm

वीनस केसरी  जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 12:17pm

arun kumar nigam  जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,

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