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मुग्ध हुआ देख तेरे चितवन नयनों का प्याला,
मेरे नयनों में लेलु थोड़ी,तेरी मुग्ध मधु हाला |

 

मन आतुर है देख तेरे अधरों की यह मुग्ध हाला 
थोडा जाम पिला तेरे कर से,मेरी ये ही मधुशाला |
 
मुग्ध हुआ में तो पढ़ तेरी कविता की पंक्ति-माला
मधु भरे शब्द तेरे, छलक रहा जैसे मधु प्याला |
 
कविता में गर हो मिठास,जैसे बैठे हो मधुशाला
छलक रहा यौवन जैसे,तृप्त करे ये अमृत-प्याला |
 
शेष पिला अब साकी,आतुर जिनकी अंतर ज्वाला 
तृष्णा उनकी हर पहले तू, जो जाते हो मधुशाला |
 
शीतल मधुमास भरी लगती,तेरे नयनों की ज्वाला,
इन्द्रजीत भी मुग्ध हुए है, पीकर तेरा अमृत प्याला ।
 
मत कहना दुनियावालों, मुझको कोई नेता का साला,
गम भूलने को लेऊ मै तो,छलकता नयनों का प्याला ।

 

 -लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला,जयपुर

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Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 6, 2012 at 6:55pm

आदरणीय सौरभ जी जी, वर्ष 2000 (शायद) में डॉ हरिवंश राय बच्चन जी के स्वर्गवास पर  समाचार पत्र से, और श्री अमिताभ बच्चन द्वार दूरदर्शन पर सुनकर कुछ दिन कुछ पंक्तिया मै गुनगुनाता रहता था । अभिहाल ही एक माह पहले रात्रि को नींद न आने पर यह रचना लिखी पर मेरी प्रकृति के विपरीत समाज को लगेगी, यह सोचकर पोस्ट नहीं कर पारहां था ।                               आपका दिल से हार्दिक आभार आदरणीय।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 6, 2012 at 6:33pm

आदरणीय लक्ष्मणजी, शृंगार की मनोहारी छटा व्याप गयी है. दो कारण प्रतीत होते हैं.

एक, लगता है आपने अभी-अभी बच्चन की ’मधुशाला’ पढ़ी है.  दो, .... जय होऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ...  :-))))

Comment by रविकर on November 6, 2012 at 9:13am

AABHAAR

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 5, 2012 at 11:06am
हार्दिक धन्यवाद रविकर भैया, देख -
वय सीमा तोड़कर धुप रविकर संग सेक 
आँखों से वे पी रहे ,  देख नयन तू सेक ।
देख देख कर उन्हें, कर कलम से ये लेख,
श्याही कलम पी जाय,हो तेरी ये खूबी श्रेष्ठ 
Comment by रविकर on November 5, 2012 at 10:51am

आदरणीय अग्रज |
गजब --
सादर
भाई साहब का प्रिये, नगर गुलाबी श्रेष्ठ |
चढ़ा गुलाबी रंग है, सृंगारिकता ठेठ ||

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