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ग़ज़ल-- एक छोटी सी कोशिश

 देखते ही देखते दिन रात बदल जाते है
पल में लोग अपनी बात बदल जाते है

यूँ बदल गई आब-ओ-हवा मेरे शहर की
घर देख कर यहाँ अब ताल्लुकात बदल जाते हैं

न कर गुरुर बन्दे मेयार-ए-ख़ुद पर
कौन जाने कब किसके हालत बदल जाते हैं

रह गई है मौहब्बत की इतनी ही हकीक़त
रोज आशिको के अब जज्बात बदल जाते हैं

होती है आरजू-ए-मुकतला यहाँ सभी को 
तकदीरे कभी तो कभी ख्वाहिशात बदल जाते है

क्या करें जहाँ में ऐतबार अब किसी का
जब दोस्त ही अपनी औकात बदल जाते हैं 

मेयार = स्तर
मुकतला = ज्यादा

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Comment

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Comment by सूबे सिंह सुजान on October 24, 2012 at 9:31pm

ख्याल अच्छे हैं।। बधाई।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2012 at 9:15pm

देखते ही देखते दिन रात बदल जाते हैं
लोग पल भर में ही अपनी बात बदल जाते हैं

सोनम जी, सुन्दर भाव है, बधाई स्वीकार करें इस प्रयास पर |

Comment by वीनस केसरी on October 20, 2012 at 3:09am

बहुत खूब
सुन्दर भावाभिव्यक्ति

कृपया ध्यान दे...

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