For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ऐ मेरे प्रांगण के राजा

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े 

झंझावत जो सह जाते थे 

जीवन के वो बड़े बड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

बरसों से जो दो परिंदे 

इस कोतर में रहते थे 

दर्द अगर उनको  होता 

तेरे ही  अश्रु बहते थे 

उड़ गए वो तुझे छोड़ कर 

अपनी धुन पर अड़े अड़े

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

इस जीवन की रीत यही है 

सुर बिना संगीत यही है  

उनको इक दिन जाना था 

जीवन  धर्म निभाना था 

राजा जनक भी खड़े रह गए 

आंसू  नयन से झड़े झड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

इकला ही है आना- जाना 

चंद दिनों का है ठिकाना 

जीवन के इस रंग मंच पर 

आकर बस किरदार निभाना 

कुम्भकार की माटी जैसे 

बनते मिटते सभी घड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

**********************

Views: 740

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 11, 2012 at 9:02pm

आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी आपको रचना पसंद आई उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 11, 2012 at 7:49pm

ऐ मेरे प्रांगण के राजा

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े 

झंझावत जो सह जाते थे 

जीवन के वो बड़े बड़े 

क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े ?

सुन्दर भावनात्मक रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आद. राजेश कुमारी जी.

Comment by राज़ नवादवी on October 10, 2012 at 10:10pm

शुक्रिया आपका आदरणीया राजेश जी, //बात बस लिखते लिखते कह डाली, चाय पीते पीते ज्यूँ सिसकती है प्याली// सादर!  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2012 at 9:51pm

//रिश्ते ओ किर्दार कुछ ऐसे गुज़रते जाते हैं, मैं इक साकिन ज़मीं हूँ, अफ्लाक के अहाते हैं!//---वाह!! क्या बात कही है 

Comment by राज़ नवादवी on October 10, 2012 at 9:37pm

क्या बात है,

//दिलसे भी है पोशीदा मेरी डायरी, 

हाय संगीन-ओ-संजीदा मेरी डायरी //

सच कहा आपने, यादों के ताने बाने में ज़िंदगी के फ़साने को लिखा है हमने. जो कहा हमने वो न सुना आपने, जो न लिखा वो पढ़ा है आपने. 

//रिश्ते ओ किर्दार कुछ ऐसे गुज़रते जाते हैं, मैं इक साकिन ज़मीं हूँ, अफ्लाक के अहाते हैं!//

- राज़ नवादवी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2012 at 8:31pm

 राज़    नवद्वी जी हार्दिक आभार आपको रचना पसंद आई वास्तव में ये रचना बहुत पुरानी है आज कल में  ही मैं अपनी डायरी देख रही थी तो नजर पड़ गई इस रचना पर ये तब लिखी थी जब मेरी बेटी विवाह के बाद विदा हो गई थी और बेटा होस्टल लौट गया था अपने पति की आँखों में पहली बार आंसू देखे थे तब व्यथित मन से एक दिन लिखी थी 

Comment by राज़ नवादवी on October 10, 2012 at 8:20pm

//ऐ मेरे प्रांगण के राजा, क्यूँ तुम ऐसे मौन खड़े// वृक्ष को किया गया ये संबोधन बहुत ही पसंद आया, वैसे सम्पूर्ण रचना ही सुब्दर है, बधाई हो आदरणीया राजेश जी! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2012 at 7:36pm

आदरणीय सौरभ जी ह्रदय से आभारी हूँ मेरी रचना को मान दिया आपने 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 10, 2012 at 5:58pm

कुम्भकार की माटी जैसे
बनते मिटते सभी घड़े

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपकी प्रस्तुत कविता में निहित भावों से हृदय भर गया.  हार्दिक बधाई स्वीकार करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 10, 2012 at 8:48am

आदरणीय रेखा जी आपको रचना पसंद आई हार्दिक धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
50 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"जिन स्वार्थी, निरंकुश, हिंस्र पलों का यह कविता विवेचना करती है, वे पल नैराश्य के निम्नतम स्तर पर…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Jul 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Jul 30
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Jul 29

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Jul 29
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Jul 27

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service