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नशेमन है हमारा दिल जनाब हल्का हल्का सा

रखा जो आपने रुख पे नकाब हल्का हल्का सा
चमकता चाँद दिखता आफताब हल्का हल्का सा

झुकी पलकें उठी दीदाबराई करने के खातिर
हया छलकी बढाने को शबाब हल्का हल्का सा

दिया बोसा मेरे लब सिल गए सफाई जो मांगी
सवालों का हसीं आया जवाब हल्का हल्का सा

गुलाबी हो गया कोरा सफाह लिखते लिखते ये
मिला है जिस्म में तेरे गुलाब हल्का हल्का सा

अगर वो "दीप" भरते हैं उड़ान पाने को चाहत
नशेमन है हमारा दिल जनाब हल्का हल्का सा


संदीप पटेल "दीप"

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 26, 2012 at 9:33am

आदरणीय लक्ष्मण सर जी सादर प्रणाम
आपको ये ग़ज़ल पसंद आई और आपसे दाद मिली
ये स्नेह यूँ ही बनाये रखिये सर जी
सादर धन्यवाद    सहित  आभार  आपका  

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 25, 2012 at 4:16pm

रखा जो आपने रुख पे नकाब हल्का हल्का सा
चमकता चाँद दिखता आफताब हल्का हल्का सा

नशेमन है हमारा दिल जनाब हल्का हल्का सा 
वाह वाह भाई संदीप कुमर पटेल, क्या बात है 
नशेमन है दिल तुम्हारा जनाब हल्का हल्का सा 
तुम्हारे इस गुलाबी दिल को बधाई भाई  

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