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वो रहते है मेरे जानिब से हर पल बेख़बर यारों

जब भी रात होती है खिड़की खोल देते हैं,

क़यामत आएगी इक दिन पता उनको भी है यारों

इसी बहाने से वो  खिड़की से नज़ारा रोज़ लेते  हैं,

मुक़द्दर में था दीदार करना नूर ए हुस्न का

इसी के वास्ते पौधों को वो पानी रोज़ देते हैं,

क़यामत आ ही जाएगी मै मिट जाऊं भी शायद

इसी खौफ में शायद वो नमाजें रोज़ पढ़ते हैं,

सोया रहता हूँ जब मैं बेख़बर हो दीन दुनिया से

वो नीदों  में मेरी आकर बातें खूब करते हैं,

रुलाते हैं हंसाते है मुझसे रूठ जाते हैं

मनाते हैं तो न आने की धमकी दे के जाते हैं,

करूँ क्या कुछ नहीं मुझको पता की इश्क़ होता है क्या

करूँ जब हाल दिल का बयां लोगों से वो हँसते मुस्कुराते हैं,

अगर हम मिल न पाएं तो जुदाई भी भली यारों

मुबारक हों उसे खुशियाँ जो बक्शी हैं खुदाई ने  ,

तजुर्बा इश्क़ का शायर बना देता है आशिक को

ग़ज़ल बनकर आँखों से आंसू निकलते हैं................

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Comment

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Comment by Rajeev Mishra on September 20, 2012 at 10:08pm

बहुत  सुन्दर लोकेश भाई जी !

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