For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हो गया है मेरा शहर जन्नत

शाम जन्नत हुई सहर जन्नत
आप आये हुआ ये घर जन्नत

जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ     
हो गया है मेरा शहर जन्नत

राह मुश्किल भरी रही लेकिन 
आपके साथ था सफ़र जन्नत

ख्वाब क्या और क्या हकीकत में
नूर देखा हुई नज़र जन्नत

'दीप' वीरां लगा जहाँ तुझ बिन
इश्क की याद थी मगर जन्नत 

संदीप पटेल "दीप"

Views: 601

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 11, 2012 at 9:16am

आदरणीय हरविंदर जी सादर
आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपकी दाद मिली
इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सहित सादर आभार
स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on September 11, 2012 at 7:06am

सुन्दर रचना मित्र संदीप जी.......बधाई स्वीकारें..........

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 10, 2012 at 6:57pm

अच्छी प्रस्तुति दीप जी! क्या कहन है वाह-वा! ! :-)

मक़ते के उला की तक़तीअ कर लें मात्रा गड़बड़ है!

'दीप वीरां लगा जहाँ तुझ बिन' या 'दीप वीरां लगा ये जग तुम बिन' से बात बन जाएगी! हार्दिक बधाईयां..!!

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on September 10, 2012 at 6:39pm
संदीप भाई जी!आपकी गजल बहुत उम्दा है।छोटी बह्र किन्तु गम्भीर बात और वो भी सलीके से।बहुत खूब।हार्दिक बधाई।मुझे लगता है जैसे आप गजल के लिए ही बने हैं।
Comment by seema agrawal on September 10, 2012 at 5:39pm

बहुत खूब बहुत खूब संदीप जी आपकी गज़लें तो कमाल कर रहीं हैं ....सभी अश'आर माशाल्लाह 

मुबारकबाद .......

Comment by Harvinder Singh Labana on September 10, 2012 at 5:14pm

जो पड़े हैं कदम तुम्हारे यूँ     
हो गया है मेरा शहर जन्नत

 

Behad Khoobsurat Deep Sahab..

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर  होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर ।उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service