For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इस तरह दूर वो आजकल हो गई।

जैसे इस शहर की बिजली गुल हो गई।

देह तेरी  किसी  बेल  जैसी लगे,

आई बरसात धुलकर नवल हो गई।

इस तरह रास्ते और लम्बे हुये,

जैसे के मेरी लम्बी ग़ज़ल हो गई।

बेवफा क्या बताऊँ तेरी बाट में,

प्यार की बर्फ पिघली,और जल हो गई।

आम की भोर पर भंवरे जो आ गये

मुस्कुराहट मधुरता  का  फल हो गई।

एक बरसात आई तुम्हारी तरह,

और जोहड में खिल कर कमल हो गई।।

                                      सूबे सिंह सुजान

Views: 561

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 24, 2012 at 10:00pm

Saurabh Pandey............ji namskar aapka dnyawad..........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 11:50pm

सादर धन्यवाद, भाईजी.

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 10:49pm

सौरभ जी, मैं कह चुका हूँ क्षमा की कोई आवश्यकता नहीं है।। नाम का क्या है कुछ भी रख दो।।अब सबके घरों में दो-दो या इससे भी अधिक नामों का प्रचलन हो गया है। माँ बाप खुद बच्चों के नाम बिगाडते हैं ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 10:41pm

नामों के प्रति मैं अत्यंत संवेदनशील रहता हूँ, भाई सूबे सिंह सुजानजी.  फिरभी भूल हुई.  मैं हृदय की गहराइयों से क्षमाप्रार्थी हूँ.

सादर

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 10:36pm

Saurabh Pandey....जी, मेरे नाम में चौहान नहीं,   सुजान है।।।।

मैं हैरान होता हूँ। याहू ग्रुप में भी ऐसा ही होता है कंई बार कईं कवि मुझे चौहान ही लिख जाते हैं,,,,,,,,,,खैर कोी बुरा नही है चौहान भी, नाम तो नाम है।।।कुछ भी रख लो...........आखिर जाना ही तो है दुनिया से सब नामों को..............

आपने कहा, कि मतले की कहन ने चौंकाया है............ये तो आपने मुझे ढंडस दिया है।। धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 23, 2012 at 10:22pm

भाई सूबे सिंह चौहान जी, अपनी ग़ज़ल पर मेरी हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें. हिन्दी शब्दों का अन्यतम प्रयोग हुआ है. यह अत्यंत संतुष्टिदायक है.

मतले की कहन ने जिस तरह से चौंकाया है वह आपकी ग़ज़लों के प्रति उम्मीद बढ़ाती है.  हार्दिक बधाई.. .

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 10:12pm

seema agrawa.........आपने मेरा उत्साह दोगुना कर दिया है। आपके द्वारा लिखित शब्दों ने मुझे उत्साहित किय़ा है। मुझे अब इससे अच्छी ग़ज़ल कहनी ही पडेगी। आपके द्वारा जो तारीफ की गई है वह अमूल्य है मेरे लिये।

                                                                            बेहद शुक्रिया

Comment by seema agrawal on August 23, 2012 at 10:06pm

वाह बिलकुल नए अंदाज़ की बातें ...हिंदी के शब्दों का बहुत सुंदरता के साथ प्रयोग हुआ है आपकी गज़ल में 

देह तेरी  किसी  बेल  जैसी लगे,

आई बरसात धुलकर नवल हो गई।......क्या बात है !!!!!

एक बरसात आई तुम्हारी तरह,

और जोहड में खिल कर कमल हो गई।    वाह !!!!!

 हार्दिक बधाई सुजान जी 

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 9:54pm

वीनस केसरी.............जी, आपकी नज़र को ग़ज़ल अच्छी लगी मन प्रसन्न हुआ की कंही न कंही मैं लिखने लायक तो हुआ। वरना काफी दिनों से ग़ज़ल लेखन करने के बाद भी कईं बार उस्तादों से डांट खानी पडती है।

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 23, 2012 at 9:52pm

Rajesh Kumar Jha.... झा जी आपने मीठी ग़ज़ल कहा तो मुझे आपकी मिठास का अनुभव होने लगा है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहीं खो गयी है उड़ानों की जिद में-गजल
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी and Mayank Kumar Dwivedi are now friends
yesterday
Mayank Kumar Dwivedi left a comment for Mayank Kumar Dwivedi
"Ok"
Sunday
Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
Apr 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
Mar 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Mar 31
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Mar 31
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Mar 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Mar 30
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Mar 29

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service