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व्यथा जमाई की (हास्य) : मनहरण घनाक्षरी

ससुर जी ये कब का, तूने बैर है निकाला,
काहे अपनी बेटी को, सर पे मेरे डाला |

लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,
साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |

पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात नहीं,
फिल्म देखे रात नहीं, अटका है निवाला |

मान गया रूप बड़ा, गुण भी कोई चीज है,
बोले बिना जान सके, क्या कहे घरवाला ||

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Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 10:28pm

सब आपका आशीर्वाद फल रहा है महाप्रभु
आपका डंडा  सबको सुधार देता है

__मैंने प्रयास किया आदरणीय, आपको पसन्द आया तो मुझे  बड़ा सुकून मिला

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 10:24pm

हा हा हा... आदरणीय अलबेला जी, आपके भाव बहते आते हैं .. :-)))

ऐसी ’उद्घोष’ पत्नी को ’आइटम’ ही कह डाला.. . :-))

ओबीओ की ’सीख-सिखाना’ परिपाटी का सम्यक निर्वहन हुआ देख कर मन मुग्ध है.

सादर

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 9:59pm

जय हो अलबेला भैया की..........

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 9:40pm

pyare bhaai main aadarniy saurabh ji se sahmat hoon.........

aisa karke dekho........

shaayad saurabh ji paas kar den........

ससुर जी ये कब का, तूने बैर है निकाला,   ____आदरेय ससुरजी, मुझ से क्या बैर था जो
काहे अपनी बेटी को, सर पे मेरे डाला |      ____कन्यादान के बहाने आपने  निकाला है

लड़की है वो या फिर, बकबक की टोकरी,  ____आपकी जो छोकरी है, संकट की टोकरी है
साल भर हुआ नहीं, सरका है दिवाला |  -_____इसकी कृपा से मेरा  निकला दिवाला है

पाक कला ज्ञात नहीं, देर जगे बात नहीं,   ____चूल्हा चौका ज्ञात नहीं, मीठी कोई बात नहीं,
फिल्म देखे रात नहीं, अटका है निवाला |   ___ढंग का मिले न मुझे एक भी  निवाला है

मान गया रूप बड़ा, गुण भी कोई चीज है,  ___रूप तो है ख़ूब किन्तु, गुण एक भी नहीं है
बोले बिना जान सके, क्या कहे घरवाला ||  ___हाय कैसा आयटम मेरे पल्ले डाला है

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 9:15pm

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 9:14pm
अलबेला भैया, फिटकिरी भी जरूरी है। जरा उन बेचारों टाँग खींचने में मजा भी बहुत आता है। ही...ही...ही...
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 9:10pm
आदरणीय गुरुदेव सौरभ सर, बिलकुल आपसे सहमत हूँ। आपलोगों से इसी स्नेह और मार्गदर्शन की अपेक्षा है। हार्दिक आभार।
Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 9:06pm
आदरणीय गणेश सर, आपकी बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ। आपने जो पंक्तियाँ सुझाई वो अतिउत्तम हैं। आपजैसे गुरुजनों का स्नेह बना रहे तो साहित्य साधना का मार्ग और भी सुगम हो जाएगा। हार्दिक आभार।
Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 9:06pm

वे अपनी ख़ुद सोचेंगे भाई..........कुंवारे हो तो मज़ा करो..........
शादी वालों के घाव पर  फिटकरी क्यों घिस रहे हो...हा हा हा

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 21, 2012 at 8:59pm
आदरणीय अलबेला भैया, अजी मैं तो अभी कुँवारा हूँ, पर जरा उन बेचारों की सोचिए जिनपर सचमुच बीतती होगी। हा...हा...हा...

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