For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भिड़ रही हैं परवतों से राइयां

हाय रे ये इश्क़ की बेताबियाँ
ले रही हैं ज़िन्दगी अंगड़ाइयां

क्या कहूँ इस से ज़ियादा आप को
मार डालेंगी मुझे तन्हाइयां

आजकल मातम है क्यूँ छाया हुआ
सुनते थे कल तक जहाँ शहनाइयाँ

दौर है ये ज़ोर की आजमाइशों का
भिड़ रही हैं परवतों से राइयां

चल पड़ा हूँ मैं निहत्था जंग में
लाज रख लेना तू मेरी साइयां

इक जगह टिकती नहीं हैं ये कभी
मुझ सी ही नटखट मेरी परछाइयाँ

इतनी सुन्दर बीवियां दिखती नहीं
जितनी सुन्दर काम वाली बाइयां

'अलबेला' है मसखरा, शायर नहीं
ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइयां

-अलबेला खत्री

Views: 1035

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on August 22, 2012 at 2:39am

सुन्दर भावाभिव्यक्ति


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 11:58pm

सादर भाईजी.

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 11:35pm

आदरणीय, मैं चाहता तो ये था कि इसे एडिट कर के  लगाऊं ....लेकिन फिर ख्याल आया कि  जो मुझे लग रहा है  वो सार्वजनिक क्यों न कर दूँ  ताकि  सभी मित्रों तक ये सन्देश पहुंचे कि   पोस्ट करने से पूर्व भली भांति परख लेनी  चाहिए रचना को.....अन्यथा  बाद में तो डंडा लेकर  महाप्रभु  आने  ही वाले हैं.....हा हा हा

आपके स्निग्ध स्पर्श ने  गदगद कर दिया  भाई जी.........

आपकी वीरू हो !
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 11:27pm

हा हा हा हा...........

क्या संशोधन हुआ है ! वाह !

सुना है, आपने भी अवश्य सुना होगा, आदरणीय, कि अपने उत्कर्ष के दिनों में जब सिर्फ़ नाम ही हर तरह से सक्षम हुआ करता था, नेहरूजी, छद्म नाम से अख़बारों में अपने ऊपर कड़ी से कड़ी विवेचना लिखते थे. उन लेखों में अपने कार्यों की खूब नुक़्ताचीनी किया करते थे. उनका तर्क़ था कि इससे वे अपनी ज़मीन नहीं भूल पाते. सब तरह से समरस रहते हैं.

आज आपको देखा खुद की ही लानतमलामत करते .. :-)))))))

जय हो.. . (वीरू ?) .. हा हा हा हा हा..........

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 11:18pm

आदरणीय  महाप्रभु..........मैंने आपके  आगमन  की आहट पा कर ख़ुद ही सारे सुबूत मिटा दिए....हा हा हा

डंडे से बच गया .....
वीरू हो !

__सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 21, 2012 at 11:13pm

लीजिये .. खुद ही कह दिया - ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइयां

अब क्या कहा जाय.  वर्ना कुछ पूछ बैठता.  आजमाइश ही सही, पर कैसी ?  :-)))

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 9:04pm

वाह वाह अलबेला जी.........बहुत खूब
क्या बात है
खूब कहा आपने

बस कहीं कहीं  चूक कर दी है........ठीक कर लेंगे तो बेहतर होगा


हाय रे ये इश्क़ की बेताबियाँ
ले रही हैं ज़िन्दगी अंगड़ाइयां

क्या कहूँ इस से ज़ियादा आप को ________________दोस्तो
मार डालेंगी मुझे तन्हाइयां  ____________________डस रही हैं नाग बन

आजकल मातम है क्यूँ छाया हुआ
सुनते थे कल तक जहाँ शहनाइयाँ _______________गूंजती थी कल

दौर है ये ज़ोर की आजमाइशों का _______________ज़ोर की आज़माइशों  का दौर है
भिड़ रही हैं परवतों से राइयां

चल पड़ा हूँ मैं निहत्था जंग में
लाज रख लेना तू मेरी साइयां _________________मेरे

इक जगह टिकती नहीं हैं ये कभी
मुझ सी ही नटखट मेरी परछाइयाँ ______________हैं बड़ी

इतनी सुन्दर बीवियां दिखती नहीं
जितनी सुन्दर काम वाली बाइयां

'अलबेला' है मसखरा, शायर नहीं
ढूंढिए मत ग़ज़ल में गहराइयां

___धन्यवाद ...स्नेह बनाए रखिये

सादर

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 6:31pm

अरे अरे  भाई जी ..........
आपके इस स्नेह  के लिए मैं आकण्ठ  ऋणी हूँ  परन्तु  जब भी कोई  इस तरह मेरी पीठ ठोकता है शाबासी देने के लिए तो शर्म भी आती है

आपका बहुत बहुत धन्यवाद राजेश झा जी.........
सादर

Comment by Albela Khatri on August 21, 2012 at 6:26pm

सम्मान्य भाई  वाहिद जी..........
ज़माना ऊँचा  जा रहा है ...चाँद पर, मंगल पर.........ऐसे में  गहराई केवल  शायरी  में ही ढूंढना  क्या ज़रूरी है ?
कहना मत किसी  से, मैं ख़ुद जानता हूँ कि  इस ग़ज़ल में कोई दम नहीं....लेकिन मैं यह भी जानता हूँ  आप जैसे गहरे मित्रों का प्यार यों ही मिलता रहा तो...आ जायेगी ग़ज़ल में भी आ ही जायेगी...

आपकी सराहना  ..गदगद करती है
सादर

Comment by राजेश 'मृदु' on August 21, 2012 at 6:13pm

एक बेहतरीन गजल के लिए मेरी तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं, आपको पढ़ना एक पुरस्‍कार से कम नहीं लगा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
13 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"बेहद मुश्किल काफ़िये को कितनी खूबसूरती से निभा गए आदरणीय, बधाई स्वीकारें सब की माँ को जो मैंने माँ…"
13 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी"
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई। कोई लौटा ले उसे समझा-बुझा…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
Tuesday
Admin posted discussions
Monday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service