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तृष्णा की कोख से जन्मा
वासनाओं के साये में पला
एक मनोभाव है दुःख ;
सांसारिक माया से भ्रमित
षटरिपुओं से पराजित
अंतस की करुण पुकार है दुःख ;
स्वार्थ का प्रियतम
घृणा का सहचर
भोगलिप्सा की परछाई है दुःख ;
वैमनस्य का मूल्य
भेदभाव का परिणाम
आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;
अधर्म से सिंचित
अमानवीय कृत्यों की
एक निशानी है दुःख ;
कलुषित मन की
कुटिल चालों का
सम्मानित अतिथि है दुःख ;
निरर्थक संशय से उपजी
मानसिक स्थिति का
एक नाम है दुःख |

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Comment

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Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 6, 2012 at 10:40pm

आदरणीय सतीश मापतपुरी सर.......उत्साहवर्धन के लिए आपका दिल से आभार.......यूँ ही स्नेह बनाये रखियेगा........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 6, 2012 at 10:38pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय अरुण निगम सर.........

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on August 6, 2012 at 10:37pm

आदरणीय अलबेला भैया.......आपका हार्दिक आभार........दुःख की वजह तो मनुष्य के अन्दर ही होती है......मनुष्य उसे पहचान नहीं पाता.....

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 6, 2012 at 9:18pm

वैमनस्य का मूल्य
भेदभाव का परिणाम
आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;

दुःख को बहुत ही अच्छे से परिभाषित करती रचना के लिए गौरव जी बधाई स्वीकारें.

Comment by Yogi Saraswat on August 6, 2012 at 4:31pm

कलुषित मन की
कुटिल चालों का
सम्मानित अतिथि है दुःख ;
निरर्थक संशय से उपजी
मानसिक स्थिति का
एक नाम है दुःख |

kumar saab , kya khoob likha hai ! bahut khoob

Comment by Rekha Joshi on August 6, 2012 at 12:14pm

निरर्थक संशय से उपजी
मानसिक स्थिति का
एक नाम है दुःख |,खूबसूरत रचना पर मेरी हादिक बधाई स्वीकार करें गौरव जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 6, 2012 at 12:04pm

सार्थक कविता के लिए बधाई कुमार गौरव अजितेंदुजी 

दू;ख सुख प्राप्ति का साधन है 
सुख एक मर्ग तृष्णा है 
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on August 6, 2012 at 9:37am

बहुत सुन्दर विवेचना है
क्या बात है वाह वाह वाह

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on August 6, 2012 at 7:48am

वैमनस्य का मूल्य
भेदभाव का परिणाम
आलस्य का पारितोषिक है दुःख ;
कुमार जी बहुत सुंदर कविता के माध्यम से आपने दुख और और उसके कारणों को परिभाषित किया है। बहुत बहुत बधाई !!!

Comment by satish mapatpuri on August 6, 2012 at 2:53am

बहुत सुंदर कुमार साहेब , दुःख को आपने जिस तरह से परिभाषित किया है ... वह काबिले तारीफ़ है . बधाई .

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