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1.
उस बिन दुनिया ही धुंधलाए 
नयना दुख-दुख नीर बहाए,
है सौगात, नायाब करिश्मा,
ऐ सखि  साजन ? न सखी चश्मा l

2.
नज़र नज़र में ही बतियाए,
देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,
ऐ सखि साजन? न सखी दर्पण l


3.
साथ बिताएँ रैन दोपहरी ,
बातें करता मीठी गहरी ,
नटखट भी और बुद्धिजीवी ,
ऐ सखि साजन ? न सखी टीवी l
4
आते ही मुस्कान जगाए,
ख़्वाबों को ताबीर दिलाए ,
खुल्ली शौपिंग,कभी ज्वेलरी ,
ऐ सखि साजन ? न सखी सेलरी l

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 5:09pm
कहमुकरियों को सराह प्रोत्साहन देनें के लिए हार्दिक आभार संजय मिश्रा जी

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 5:07pm
आपने  इन कह-मुकरियों को पसंद किया,  आपका आभार अरुण शर्मा जी.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 5:06pm

आपका हार्दिक आभार आ. रेखा जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on August 5, 2012 at 4:07pm

डॉ,प्रचिजी पहले तो सुन्दर,समर्थ और सशक्त' कह मुकरिया' पढने को मिली इसके लिए 

हार्दिक बधाई | एक कह मुकरिया में आपने लिखा है :

नज़र नज़र में ही बतियाए,देख उसे मन खिल खिल जाए,
सुबह शाम उसको ही अर्पण,ऐ सखी साजन? न सखी दर्पण ल

इस सखी को जयपुर के कवी तारा दत्त निर्विरोध की इस पंक्तियों की ओरध्यान दिलावे 
तुम क्यों चेहरा देख रहे हो, तुम्हे कौन सी शंका है 
चेहरा तो वो देखा करते किनका रूप ढला करता है  
Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on August 5, 2012 at 4:05pm

बहुत बढ़िया कहमुकरियाँ कही आपने आदरणीया डा प्राची जी...

सादर बधाई स्वीकारें....

Comment by अरुन 'अनन्त' on August 5, 2012 at 3:20pm

वाह कह -मुकरियाँ वो भी इतनी खुबसूरत क्या बात है प्राची जी, बहुत-२ बधाई स्वीकार करें

Comment by Rekha Joshi on August 5, 2012 at 12:37pm

आदरणीया डा प्राची जी ,

आते ही मुस्कान जगाए,
ख़्वाबों को ताबीर दिलाए ,
खुल्ली शौपिंग,कभी ज्वेलरी ,
ऐ सखी साजन ? न सखी सेलरी ,अति सुंदर कह मुकरियाँ ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 11:36am
श्रद्धेय सौरभ पाण्डेय जी,
कहमुकरियों की मुक्तकंठ से सराहना कर उत्साहवर्धन करने के लिए आपका हार्दिक आभार.
दुःख और दुख में कोई अंतर होता है, मुझे मालूम नहीं था, इस ज्ञान वर्धन के लिए हार्दिक आभार, दुःख संज्ञा है, और दुख क्रिया, ये अब मै ज़रूर ध्यान रखूंगी.
                      "लगता नहीं कि चश्मा आपकी ज़िन्दग़ी में इस कद्र प्रवेश कर गया है."
आदरणीय सर, मुझे चश्मा नहीं लगा है, अभी तक तो दृष्टि बिलकुल ठीक है....  इस सोच को सराहने के लिए आभार.
सादर.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 11:28am

आदरणीय सुरेन्द्र शुक्ला जी,

आपने इन कह्मुक्रियों को पसंद किया, इस हेतु आपका आभार.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 5, 2012 at 11:27am
आदरणीय अशोक रक्ताले जी,
इन कह मुकरियों को पसंद कर उत्साह वर्धन करने के लिए हार्दिक आभार. 

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