झींगुर की रुन झुन
रात्रि में घुंघरू का
मुगालता देती हैं
बदरी की चुनरी चंदा पर
घूंघट का आभास कराती है
नीर भरी छलकती गगरी
सागर का छलावा देती हैं
अल्हड शौख किशोरी
के गुनगुनाने का
भ्रम पैदा करते हैं
बारिश की टिप- टिप
संगीत सुधा बरसाती हैं
दामिनी की चमक
श्याम मेघों की गर्जना
विरहणी के ह्रदय की
चीत्कार बन जाती है
अन्तरिक्ष में सजनी साजन
के मिलन की कल्पनाएँ
मिलकर करती हैं जो सृजन
कविताओं का,
उसके रचयिता तुम ही तो हो
ना जाने कौन सी डगर से
चुपचाप चले आते हो
और इन सब कल्पनाओं
को हकीकत के केनवास
पर शब्दों में उकेर जाते हो
कौन हो तुम ?
कोई कवि या सृजनहार ??
****************
Comment
राजेशकुमारी जी
सादर, सामयिक परिद्रश्य के पलों सुन्दरता से रचना में ढालने के लिए बधाई.
अन्तरिक्ष में सजनी साजन
के मिलन की कल्पनाएँ
मिलकर करती हैं जो सृजन
कविताओं का,
उसके रचयिता तुम ही तो हो.
वाह!
हार्दिक आभार संदीप जी
वाह वाह कल्पनाओं का आधार है किन्तु एक सजीव चित्र से कम नहीं बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी
बहुत बहुत हार्दिक आभार सीमा जी शुभकामनाएं
हार्दिक आभार संजय हबीब जी
सुन्दर चित्रांकन....
सादर बधाई स्वीकारें आदरणीया राजेश कुमारी जी...
हार्दिक आभार अरुन शर्मा जी
सुन्दरता से परिपूर्ण सुन्दर रचना. बधाई स्वीकार करें आदरेया.
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