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बलिदानों का क्या फल पाया बाबाजी

हाय ! ये कैसा मौसम आया बाबाजी
देख के मेरा मन घबराया बाबाजी

पूरब में तो बाढ़ का तांडव मार रहा
उत्तर में है सूखा छाया बाबाजी

भीषण गर्मी के झुलसाये लोगों को
मानसून ने भी तरसाया बाबाजी

चिदम्बरम को देख के ऐसा लगता है
लुंगी में कीड़ा घुस आया बाबाजी

लोकराज में जनता का दिल घायल है
बलिदानों का क्या फल पाया बाबाजी

इन्टरनेट पे प्यार का ये परिणाम मिला
युवक ने अपना प्राण गंवाया बाबाजी

ये कैसा जीवन है, जिसमे चैन नहीं
'अलबेला' को रास न आया बाबाजी


__अलबेला खत्री

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Comment

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 12, 2012 at 11:51am

बेहद खूबसूरती के साथ कही गयी लाजवाब रचना
व्यंग के बाण मौसमी प्रभाव बदलते समय का प्रवाह सब कुछ समाहित कर दिया आपने
बहुत सुन्दर सर  जी 

बधाईर्दिक हार्दिक बधाई  स्वीकार करें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2012 at 11:47am

आदरणीय अलबेला जी बड़ी ही अलबेली रचना है. बधाई स्वीकार करें महोदय

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on July 12, 2012 at 11:39am

आदरणीय अलबेला जी,

क्या ख़ूब रचना आपने प्रस्तुत की| विशेष रूप से यह पंक्ति..

लोकराज में जनता का दिल घायल है
बलिदानों का क्या फल पाया बाबाजी

सादर,

Comment by Albela Khatri on July 12, 2012 at 9:42am

जी हाँ संजय  जी, आप ठीक कहते हैं
पेस्ट कंट्रोल वालों को फोन करना पड़ेगा ...हा हा हा

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on July 12, 2012 at 9:37am

चिदम्बरम को देख के ऐसा लगता है
लुंगी में कीड़ा घुस आया बाबाजी.... बहुत खूब.... ऐसा ही लगता है...))

सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय...

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