For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जो आदमी ज़मीं से जुड़ा रह नहीं सका

जो आदमी ज़मीं से जुड़ा रह नहीं सका।

वो ज़ोर आंधियों का कभी सह नहीं सका॥

 

हिकमत1 से चोटियों पे पहुँच तो गया मगर,

कुछ देर तक वहाँ पे खड़ा रह नहीं सका ॥

 

जिसने बग़ावतें2 की नहीं ज़ुल्म के खिलाफ़,

इज़्ज़त से शानो शौक़ से वो रह नहीं सका॥

 

ठहरा हूँ झील सा मैं तेरे इंतिज़ार में,

दरिया3 की तरह खुल के कभी बह नहीं सका॥

 

सैलाब4 आंसुओं का मेरी आँख में तो था,

ये बात और है वो कभी बह नहीं सका॥

 

वो चाहता था मुझको दिलो जान से मगर,

जज़्बात5 अपने दिल के कभी कह नहीं सका॥

 

यादों का महल दिल में सलामत6  है आज भी,

जाने के तेरे बाद भी ये ढह नहीं सका॥

 

ज़ुल्मों के बर-खिलाफ़7 में “सूरज” खड़ा रहा,

बे-दाद8 ज़िंदगी में कभी सह नहीं सका॥

                                     डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

1. चाल, जुगाड़, 2. विद्रोह 3. नदी 4. जल-प्लावन, बाढ़ 5. भावनाएँ

6. कायम, बरक़रार 7. उल्टा, विपरीत  8. अन्याय, अत्याचार

Views: 453

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:25pm

जिसने बग़ावतें2 की नहीं ज़ुल्म के खिलाफ़,

इज़्ज़त से शानो शौक़ से वो रह नहीं सका॥

 बहुत खूब 

बधाई 

Comment by वीनस केसरी on July 6, 2012 at 11:40pm

बहुत खूब डॉक्टर साहब
हर शेर पर आपके खास अंदाजे बयां की मुहर लगी हुई है

दो शेर लय से भटक रहे हैं, देखिएगा ...

Comment by AVINASH S BAGDE on July 6, 2012 at 8:50pm

यादों का महल दिल में सलामत6  है आज भी,

जाने के तेरे बाद भी ये ढह नहीं सका॥...ek shandar mukammal gazal Bali sir.

 

Comment by Rekha Joshi on July 6, 2012 at 5:31pm

सूरज जी ,सादर नमस्ते ,

ठहरा हूँ झील सा मैं तेरे इंतिज़ार में,

दरिया की तरह खुल के कभी बह नहीं सका॥,अति सुंदर अभिव्यक्ति ,बधाई 

Comment by deepti sharma on July 6, 2012 at 4:05pm

आदरणीय श्री डॉ. बाली जी,

  बहुत प्रभावशाली है आपकी ग़ज़ल

शुभकामनायें|

Comment by Yogi Saraswat on July 6, 2012 at 3:45pm
आदरणीय श्री डॉ. बाली जी सादर नमस्कार ! कल में उर्दू में लिखी फैज़ अहमद फैज़ की गज़लें पढ़ रहा था , और भी गज़लें पढ़ीं हैं ! सही कहूं तो उन्हें जो सम्मान हासिल है , शायद उस ज़माने में आप जैसे लोग नहीं रहे होंगे ग़ज़ल कहने वाले अन्यथा मुझे पूरा भरोसा है आप भी उस जगह होते ! दो बातें है आपकी ग़ज़लों में ( मैं ज्यादा नहीं जानता ) एक तो कहने का ढंग आपका बड़ा मदहोश करने वाला है , दूसरे आपकी ग़ज़लों में एक तरह की रवानी होती है , मिठास होती है ! काश ! की भगवान् मुझे भी आपकी तरह ग़ज़ल लिखना सिखा देता ! ये ग़ज़ल भी आपके हुनर को एकदम सही तरह से प्रस्तुत करती है ! बहुत मीठी ग़ज़ल है आपकी !
Comment by sangeeta swarup on July 6, 2012 at 11:05am

जीवन में संघर्ष के लिए ज़रूरी है  ज़मीन से जुड़ना ..... बहुत सुंदर गज़ल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
17 hours ago
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
yesterday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"रोशनी की दस्तक - लघुकथा - "अम्मा, देखो दरवाजे पर कोई नेताजी आपको आवाज लगा रहे…"
Thursday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"अंतिम दीया रात गए अँधेरे ने टिमटिमाते दीये से कहा,'अब तो मान जा।आ मेरे आगोश…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"स्वागतम"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ

212 212 212 212  इस तमस में सँभलना है हर हाल में  दीप के भाव जलना है हर हाल में   हर अँधेरा निपट…See More
Tuesday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"//आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Oct 26
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय लक्ष्मण जी बहुत धन्यवाद"
Oct 26
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-172
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी जी, जितना ज़ोर आप इस बेकार की बहस और कुतर्क करने…"
Oct 26

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service