For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो देखो सखी

फिर रक्ताभ हुआ  नील गगन 

बढ़ रही हिय की धड़कन

विदीर्ण हो रहा हैमेरा  मन  

बाँध  दो इन उखड़ी साँसों को ,

अपनी श्यामल अलकों से 

भींच लूँ कुछ भी ना देखूं

 मैं अपनी इन पलकों से  

झील के जल में भी देखो

लाल लहू की है  ललाई

कैसे तैर रही है देखो

म्रत्यु  दूत   की परछाई 

थाम लो मुझको बाहों में

जडवत हो रही हूँ मैं 

दे दो सहारा काँधे का

सुधबुध खो रही हूँ मै

क्या सखी तूने सुनी

अभी जो आवाज आई है 

क्या अरि ने विजय की

रणभेरी बजाई है ?

ना सखी सच ये आभास नहीं है 

क्यूँ तुझको विश्वास नहीं है 

यह कोई  रक्तार्श  नहीं है 

जल में नहीं कोई  रक्तरंजित साया 

ये तो हिलते दरख्तों की छाया 

सांझ ढले की लाली है ये 

संध्या की चुनर मतवाली है ये 

गगन को देखो पलकें उठाकर 

नभचर उड़ रहे कतारें बनाकर 

ध्यान से देखो अपनी ध्वजा है 

युद्ध विराम का बिगुल बजा है 

अब रणांगन से लौटेंगी खुशियाँ 

गले मिलेंगी हम सब सखियाँ 

बुझा दो जो हिय  में अगन जले  

चल सखी थाल सजाएं हम  

आ चल अब घर लौट चलें  

आ चल अब घर लौट चलें 

******

Views: 814

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 10, 2012 at 2:27pm

  

हार्दिक आभार हरीश भट जी 
Comment by Harish Bhatt on July 10, 2012 at 1:33pm

आदरणीय राजेश जी नमस्‍ते, सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2012 at 10:20am

उमाशंकर मिश्र जी आपके तारीफ़ के शब्दों ने मेरी लेखनी को स्फूर्ति प्रदान की हार्दिक रूप से आभारी हूँ 

Comment by UMASHANKER MISHRA on July 4, 2012 at 11:48pm

बहुत बढ़िया चित्रण आदरणीय राजेश कुमारी जी आपकी रचना और प्रकृति का  साथ आपकी कविताओं.में सौंदर्य भर देता है

पाठक को गहन चिंतन करने को बाध्य करती रचना

बधाई ..बहुत सुन्दर रचना


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2012 at 9:11pm

योगी सारस्वत जी बहुत बहुत शुक्रिया आपको मेरी रचना पसंद आई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 4, 2012 at 9:10pm

लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी बहुत बहुत हार्दिक आभार 

Comment by Yogi Saraswat on July 3, 2012 at 4:11pm

ना सखी सच ये आभास नहीं है 

क्यूँ तुझको विश्वास नहीं है 

यह कोई  रक्तार्श  नहीं है 

जल में नहीं कोई  रक्तरंजित साया 

ये तो हिलते दरख्तों की छाया 

सांझ ढले की लाली है ये 

संध्या की चुनर मतवाली है ये 

गगन को देखो पलकें उठाकर 

नभचर उड़ रहे कतारें बनाकर 

ध्यान से देखो अपनी ध्वजा है 

युद्ध विराम का बिगुल बजा है

बहुत बढ़िया शब्द और सुन्दर प्रस्तुति !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 3, 2012 at 11:52am

क्या अरि ने विजय कीरणभेरी बजाई है ?बुझा दो जो हिय  में अगन जले,चल सखी थाल सजाएं हम,  आ चल अब घर लौट चलें,  

बहुत सुन्दर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई  राजेश कुमारीजी   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 3, 2012 at 9:12am

सौरभ जी आपका बहुत बहुत हार्दिक आभार आपको  मेरी रचना पसंद आई |


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2012 at 10:51pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी,  किसी रणबाँकुरे की भार्या की हाँ-ना की कश्मकश को बहुत ही दिल से उकेरा है आपने.

बहुत खूब. सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
20 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
20 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
yesterday
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service