"आज तो आपने इनकी मांग पूरी कर दी, लेकिन कल इन्होने कोई और महंगी चीज़ मांग ली तब आप क्या करोगे ?"
"चिंता काहे करती हो भगवान्, अभी तो एक और किडनी मौजूद है मेरे शरीर में."
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"चिंता काहे करती हो भगवान्, अभी तो एक और किडनी मौजूद है मेरे शरीर में."
//भार्गव जी के मन से एक भारी बोझ उतरा, लेकिन उनकी पत्नी ऐसी अनुचित मांग को पूरा करने पर बेहद नाराज़ थी.//
आदरणीय योगराज जी, आप की उपरोक्त बेहतरीन लघुकथा अपने आप में सम्पूर्ण है | इस हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें ! भार्गव जी जी पत्नी की नाराजगी एकदम जायज है|
//"चिंता काहे करती हो भगवान्, अभी तो एक और किडनी मौजूद है मेरे शरीर में."// ने तो एकदम दिमाग को झिंझोड के ही रख दिया...... फिर भी किसी मोहवश या किसी भी अन्य कारणवश प्रिय से प्रिय व्यक्ति की अनुचित मांग के पूरा करना उचित नहीं है | परन्तु भार्गव जी नें सोंच विचार कर एक पिता का दायित्व निभाते हुए जो भी उचित समझा, किया...... मेरे विचार में यह और भी बेहतर होता यदि भार्गव जी अपनी बिटिया के ससुरालवालों को क़ानून का सहारा लेकर उचित सबक सिखा देते ....यदि ऐसा होने लगे ..तो इस समाज में मौजूद दहेज के लोभी भूखे भेड़िये आगे से कभी भी ऐसी अनुचित मांग रखने की हिम्मत नहीं कर सकेंगे | सादर
अच्छी लघुकथा है...लेकिन यह कोई समाधान नही, दहेज जैसी कुप्रथा का। इस पर विचार करने से अच्छा है इस कोढ़ का समूचित इलाज किया जाय। मजबूर को न और मजबूर किया जाय और न ही संपन्न व्यक्ति दिखावा कर कर के इसे और अधिक बढ़ावा ही दे।
कथा किसी अवश पिता की मात्र विवशता को ही नहीं प्रस्तुत करती बल्कि आजके समाज में नारी की सबल सोच का भी बखान करती है - भार्गव जी के मन से एक भारी बोझ उतरा, लेकिन उनकी पत्नी ऐसी अनुचित मांग को पूरा करने पर बेहद नाराज़ थी.
इस पंक्ति ने इस लघुकथा में अभिनव शेड्स दिये हैं जो आनेवाले समय की प्रतिच्छाया हैं. वर्तमान और आगामी समय की सोच बेहतरीन ढ़ंग से मुखरित हुई है.
जहाँ अपनी लाडली की खुशियों के लिये सहर्ष अपनी एक किडनी बेचता एक विवश पिता ’आज’ की विडंबनाओं का अक्स है तो वहीं उसी बेटी की माँ आगामी समय की सार्थक झलक है जो दृढ़ता के साथ अपने पक्ष रखती है. ईश्वर उस आनेवाले समय की सोच से समाज-परिवार को शीघ्र आप्लावित करे.
जिस आसानी से कथा सीधे दिल में उतरती है वह कथा-कहन का उत्कृष्ट उदाहरण है, आदरणीय योगराजभाईसाहब.
आपकी इस उत्कृष्ट रचना के लिये आपको हृदय से नमन.
सादर
ooooooooooooooooof!!!!!
lekin dardnak sachchai hai.
hriday-sparshi laghu katha
wah!
Yograj ji....
आदरणीय योगराज जी, सादर
उफ़
कितना मजबूर है एक पिता.
दानव हैं दहेज लोभी.
बेटी के प्यार लुटाया घर संसार
वाह बाप तेरा अनोखा प्यार्
मांग पर दूसरा गुर्दा देने को तैयार
नमस्कार नमस्कार नमस्कार
बधाई, सर जी.
एक बाप का बेटी के प्रति अथाह प्यार आपकी लघु कहानी में झलक रहा है इस प्यार और माता पिता का सामजिक डर ही ऐसे लालची दामादों और ससुराल वालों को बढ़ावा देता है बेटियों को भी अब सचेत होना पड़ेगा और इस दहेज़ प्रथा नामक विष को ख़त्म करना होगा ........अन्दर तक सिहरा गई यह रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी.....बधाई योगराज जी
aadarnye yograj sir dahej pratha waqai me ek bahut badi beemari he jo hamare samaj me fel chuki he ek baap ke dil ke dard ko aapne is rachna me bahut achchi tarah se vyakt kiya hai ... हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर
आदरणीय योगराज जी बहुत उत्कृष्ट लघुकथा लिखी आपने, अंत सीधे दिल पर वार करता है. समाज में व्याप्त वर-दक्षिणा कुरीति का दानव कैसे एक बेटी के मन में डर, माता-पिता की ज़िंदगी में बेबसी को लाता है,,, एक लाचार पिता और कर भी क्या सकता है? इन तथ्यों को बखूबी उजागर किया है... हार्दिक बधाई इस लघु कथा पर.
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