For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो एक बड़ा अफसर है. अफसर है तो जाहिर सी बात है शहर में रहता है. पिता एक साधारण से किसान है. खेती करते हैं, सो गाँव में रहते है. अफसर बेटा अपने परिवार में बहुत व्यस्त है इसलिए गाँव जाकर पिता का हाल-समाचार लेने का समय नहीं है. बेटे से मिले बहुत दिन हो गए तो पिता ने विचार किया शहर जाकर खुद ही उससे मिल आया जाये. शहर में बेटे के रहन सहन को देख कर पिता बहुत खुश हुवे. अगले दिन गाँव वापस आने का विचार था लेकिन पोते-पोती की जिद से और रुकना पड़ा. एक - दो दिन तो ठीक ठाक बीत गए. किन्तु फिर बेटे के अफसरी बीच में आने लग गयी. बेटा पिता को टोक देता - पिता जी आप इस तरह बात करेंगे तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी - किसी के सामने इस तरह बैठेंगे तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी - किसी के सामने इस तरहबिना कांटा-चम्मच के खायेंगे तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी - इस तरह से कपडे पहनेंगे तो लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे, कुछ तो मेरी इज्जत का ख्याल कीजिये - इस तरह कहीं भी किसी से भी इस तरह घुल मिल कर बात करने लग जाते हैं, लोग कहेंगे की इतने बड़े अफसर के पिता किससे बात कर रहा हा - भला लोग क्या कहेंगे. गोया यह की पिता का हर कार्यकलाप अफसर बेटे की अफसरी के बीच आने लगता और वो अपनी इज्जत की दुहाई देने लगता. गाँव में रहने वाले सीधे सरल किसान पिता को बेटे की अफसरी पर नाज तो है लिकिन उनके कार्य कलाप से बेटे की इज्जत कैसे चली जाएगी ये उनको समझ में नहीं आ रहा था. वो चुप चाप बेटे का मुह देखने लग जाते और बेटे की तल्खी बढ़ जाती. अंत में पिता ने कुछ निश्चय किया, अपने सामान का छोटा सा थैला उठाया, घर से बाहर निकल कर एक रिक्शे को को रुकवाया और अपने गाँव जाने वाली बस पकड़ने चल पड़े.

Views: 630

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 21, 2012 at 11:58pm

काश पिता ने बेटे को बचपने में ही सही इज़्ज़त का मायना बता दिया होता तो आज उसे इतना कोफ़्त न हुआ होता.

अपने बेटे को पैसे की मशीन बना देना किसी पिता की जवानी के दुर्दिनों की भले ही मज़बूरियाँ रही होती हैं लेकिन उस मशीन की संवेदना के मर जाने का दुःख तब अधिक सालता है जब वो स्वयं उस पिता पर हावी हो जाती है.  समझ की छिछली गहराइयों में इज़्ज़त की नाव पैरती नहीं, दूरियाँ तय करना बहुत बड़ी बात है.

अच्छी कहानी है, आदरणीया नीलमजी.  सादर शुभकामनाएँ

Comment by Raj Tomar on June 21, 2012 at 11:06pm

बहुत ही कड़वा सच है ये. ऐसे लोगों की दुनिया में कमी नहीं है ..

Comment by AVINASH S BAGDE on June 21, 2012 at 3:46pm

saty mev jayate...ka ek vishay ho sakta hai...

nice one Neelam ji.

Comment by Yogi Saraswat on June 21, 2012 at 3:01pm

aaj ke jamaane ka sach dikhaati rachna ! bahut sateek aur yatharth lekhan

Comment by Albela Khatri on June 21, 2012 at 8:47am

खेद है
परन्तु ये सच है
ऐसा  होता है
___काश ! ऐसा न हो.........
__अनुपम आलेख के लिए बधाई आपको.........

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 9:09pm
आदरणीया नीलम जी जन्म दिन मुबारक हो प्रभु आप को सारी खुशियाँ और मन का सुकून दें ...जय श्री राधे 
भ्रमर ५ 
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 8:52pm
आदरणीया नीलम जी आज के हालात को सटीक दिखा पाया ये आप की लघु कथा ..दिल को  छू लेने वाला लेख ..काश  लोग इस अफसरी को अपने आफिस तक ही रहने दें पिता का प्यार अनूठा और अमूल्य होता है ..कुछ तो सम्हाला जा सकता है पर अधिक नहीं ...मन में ठेस कभी न लगने दें नहीं तो किस काम की अफसरी और बड़प्पन 
भ्रमर ५ 
Comment by Rekha Joshi on June 20, 2012 at 7:37pm

नीलम जी ,बिलकुल सही लिखा है आपने,आपसी रिश्तों के बीच झूठी शान -शौकत ,बढ़िया लेखन ,बधाई 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 1:49pm

आदरणीय नीलम जी, सादर 

बहुत सही फरमाना आपका 

मिट रहा रिश्ता बेटे बाप का 

चकाचोंध में मशहूर हो गए 

नाजुक रिश्ते भीड़ में खो गए 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 20, 2012 at 1:19pm

नीलम जी विलकुल आज की वास्तविक स्थिति का वर्णन करती हुई लघु कथा.....बहुत सुंदर । बहुत बहुत बधाइयाँ !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
8 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
yesterday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।   ........   धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन…"
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"आम तौर पर भाषाओं में शब्दों का आदान-प्रदान एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है। कुण्डलिया छंद में…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service