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मेरा अंतर्विरोध

मेरा अंतर्विरोध ,
लिबलिबी उत्तेजित ट्रिगर दबी पिस्तौल है !
जब भी जमने लगता है प्रशस्तर ,
अहसासात की रूमानियत और इंसानियत पर,
तत्क्षण वँही ठोक देता है धांय-धांय,
ढेर कर देता है सारा व्रफुरपन मेरा अंतर्विरोध !

बदन के कुएं में जब भरने लगता है झूठ
सारी काली कमाई गंदे खून की चूस लेता है मेरा अंतर्विरोध !
भर देता है जाकर कान आईने के मेरा अंतर्विरोध ,
फिर घुसकर आईने में तडातड झापट रसीद करता है चेहरे पर ,
जैसे मल्लयुद्ध कोई,यूँ धोबी पछाड़ लगा पटक देता है मेरा अंतर्विरोध !
रात भर तब जगाए रखता है पीने को नींद नहीं देता ,
मेरे ठीक होने तक मलाल के इंजेक्शन घोंपता है मेरा अंतर्विरोध !

जब भी जमने लगती है कालिख-गलीज खोपड़ी में
सदाचार के तेज़ाब से घिस-रगड़ साफ़ करता है भेजा मेरा अंतर्विरोध !
भोंक सुआ, गरम चिमटा नासूर हो रहे बद्ख्याल पर
सारा मवाद दुर्जनता का बहा मलहम लगाता है मेरा अंतर्विरोध !
जब तलक नहीं होता क्रोध-मोह-दंभ-ईर्ष्या-द्वेश विच्छेद
मुझे शल्य सा कोंचता रहता है आत्मा का सारथी मेरा अंतर्विरोध !

मेरा अंतर्विरोध मुझे प्रयास से नपुंसक नहीं होने देता,
नहीं करने देता किस्मत को मेरे हौसलों की नसबंदी !
जब दबा होता हूँ टनों मीट्रिक हार के ढेर के नीचे,
तब भी बदन में नया फौलाद भर रहा होता है मेरा अंतर्विरोध !
हाँ मेरा दुश्मन भी है और मेरा दोस्त भी मेरा अंतर्विरोध !

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Comment by chandan rai on June 5, 2012 at 4:20pm
आशीष मित्र ,
ये तो आपका प्यार है ,जो आप मुझे इतना सम्मान दे रहे है ,
आपके सुन्दर शब्दों के लिए आपका शुक्रिया
Comment by chandan rai on June 5, 2012 at 4:18pm
अलबेला साहब ,
आप जैसे अग्रज अनुभवी ग्यानी व्यक्ति जब ऐसे सम्मान देते है तो ही हम जैसे गौण लोग आगे बढ़ पाते है ,
आपके शब्द मेरा होसला है
Comment by chandan rai on June 5, 2012 at 4:17pm
महिमा जी ,

आपके सहयोग , संबल देने वाले शब्द समर्थन के लिए आपका शुक्रिया !
Comment by आशीष यादव on June 5, 2012 at 8:46am

जबरदस्त रचना है। अगर सभी को यह अहसास होने लगे तो सामाजिक बुराईयाँ स्वयँ समापत हो जायेंगी। अन्तर्विरोध अन्तर्द्वन्द ही है जिससे पार पाना सच मे कठिन कर्म है।
बहुत ही सुन्दर रचना है। बधाई स्वीकारिये।

Comment by Albela Khatri on June 4, 2012 at 10:43pm

आदरणीय चन्दन राय जी.........इस मर्मान्तक विषय पर  ऐसी  कविता लिख पाना बड़े कौशल का काम है  और आपने  मानव के मन का अंतर्विरोध जिस प्रकार  साक्षात खड़ा किया है  वह बधाई का पात्र है
बधाई बधाई बधाई

Comment by MAHIMA SHREE on June 4, 2012 at 9:24pm
चन्दन जी नमस्कार ..
क्या बात है .. जबरदस्त :) मन के अंदर चल रहा अंतर्द्वंद ही तो है जो हमें अच्छे बुरे हर बात में नाप तौल करता है .सच तो है ये हमारा दोस्त  ही है  बहुत -२ बधाई आपको  
Comment by chandan rai on June 4, 2012 at 8:46pm
रेखा जी ,
आपके सुन्दर शब्दों के लिए आपका शुक्रिया
Comment by Rekha Joshi on June 4, 2012 at 7:26pm

Chandan ji,

तब भी बदन में नया फौलाद भर रहा होता है मेरा अंतर्विरोध !
हाँ मेरा दुश्मन भी है और मेरा दोस्त भी मेरा अंतर्विरोध !,ati sundr bhaav,badhai 

Comment by chandan rai on June 4, 2012 at 6:49pm
लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला जी ,
आपको कविता अच्छी लगी आपका शुक्रिया
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 4, 2012 at 6:29pm
"जब तलक नहीं होता क्रोध-मोह-दंभ-ईर्ष्या-द्वेश विच्छेद मुझे 
शल्य सा कोंचता रहता है आत्मा का सारथी मेरा अंतर्विरोध !" 
अन्तर्विरोध की शक्ति को पहचानने और अपने आत्मविश्वास 
के बल पर धनात्मक सोच की ओर डट जाने का होंसला,हो 
तो फौलादी बनता है अन्तर्विरोध, अभूत अच्छा लिखा है |
हार्दिक बधाई |-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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