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तू मेरे लिए परियों का रूप है जैसे,

कड़कती ठंड मे सुहानी धूप हैं जैसे,

तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,

या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।

तू हैं मेरी हर उदासी के मर्ज की दवा जैसी,

या उमस मे चली शीतल हवा जैसी।

तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,

या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।

वो पहाड़ की चोटी पे सजी सूरज की किरण है जैसे,

या चाँदनी बन करती वो सारी ज़मीन रोशन हैं जैसे

मेरी आँख मे आँसू आते ही मेरे संग संग वो भी रोती है,

मेरे मन को ठंडक देती है वो गले मे बाँहें डाल के सोती हैं।

तू वो जज़्बात है जो बिना कहे भी सब समझ लेती है,

तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।

………………………

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Comment by Vasudha Nigam on May 26, 2012 at 8:35pm

aap sabhi ka dhanywaad

Comment by Rekha Joshi on May 26, 2012 at 6:34pm

तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,

या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।|

vasudha ji ,bahut khuub ,badhaai 

Comment by Abhinav Arun on May 26, 2012 at 3:00pm

बेहद कोमल भावों की इतनी सरलतम  और सुन्दर - मनोरम अभिव्यक्ति हार्दिक बधाई आपको | रचना देर तक अपना प्रभाव छोड़ने वाली है यही इसकी सफलता है !!

Comment by आशीष यादव on May 26, 2012 at 9:31am

भावात्मक दृष्टि से एक शानदार रचना है। बधाई

Comment by Vasudha Nigam on May 25, 2012 at 11:09am

margdarshan karne k liye dhanyawaad aap sabhi ka 

Comment by AVINASH S BAGDE on May 25, 2012 at 11:00am

तू मेरे लिए परियों का रूप है जैसे,

कड़कती ठंड मे सुहानी धूप हैं जैसे,

तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,

या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।

तू हैं मेरी हर उदासी के मर्ज की दवा जैसी,

या उमस मे चली शीतल हवा जैसी।

तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,

या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।

वो पहाड़ की चोटी पे सजी सूरज की किरण है जैसे,

या चाँदनी बन करती वो सारी ज़मीन रोशन हैं जैसे

मेरी आँख मे आँसू आते ही मेरे संग संग वो भी रोती है,

मेरे मन को ठंडक देती है वो गले मे बाँहें डाल के सोती हैं।

तू वो जज़्बात है जो बिना कहे भी सब समझ लेती है,

तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।

wah!Vassudha ji.

Comment by AVINASH S BAGDE on May 25, 2012 at 10:57am

तू हैं सुबह चिड़ियो की चहचहाहट जैसी,

या फिर कोई निश्छल खिलखिलाहट जैसी।

तू मेरे आँगन मे फैला कोई उजाला है जैसे,

या मेरे गुस्से को लगा कोई ताला है जैसे।

तू वो एहसास हैं जो मुझे जीने की वजह देती हैं।

Vasudha Nigam JI wah!

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 24, 2012 at 6:26pm

haan vo meri beti hai , bahut sundar bhavna.  jine ka ahsaas deti hai badhai. 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 24, 2012 at 5:12pm

प्रयास बहुत ही बढ़िया है, और कसावट चाहिए इस रचना में, बधाई स्वीकारें |

कृपया ध्यान दे...

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