For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक चिड़िया की कहानी

 

मैं नन्ही सी चिड़िया...भरती हूँ आज खुले आसमान में लम्बी से लम्बी उड़ान l याद है मुझे आज भी सर्द ठिठूरी कुहासे भरी वो गीली गीली सी सुबह, जब अपनी ही धुन में मस्त, मिट्टी की सौंधी सी खुशबू में गुम मैं फुदक रही थी एक पगडंडी पर l नम घास की गुदगुदाती छुअन मदमस्त कर रही थी मुझे और मैं अपनी ही अठखेलियों से आह्लादित चहक रही थी l

 

अचानक गली के आवारा भूखे कुत्तों के झुण्ड में से एक कुत्ते नें झपट कर दबोच लिया था मुझे अपने राक्षसी जबड़ों में....बहुत फढ़फ़ढ़ाये थे मैंने अपने पंख, उस मौत के आगोश से बहार निकलने को... एक बार तो गिर भी गयी थी मैं उस राक्षस के मुख से... सम्हल भी न पायी थी कि पुनः दबोच लिया था उसने मुझे अपने जबड़ों में...

 

उफ़ ! क्या मंज़र था , ज़िंदगी और मौत की जंग का ?मेरी धड़कन बेतहाशा दौढ़ रही थी..., साँसे बहुत तेज़ चल रही थीं... शायद रुकने ही वाली थीं..., पंख ज़ख़्मी हो गए थे..., एक पैर भी टूट गया था...,सारा खून सूख चुका था..., नसें भी जम सी गयी थी... और पैने दाँतों के निशान, शायद आज तक मेरे फरों की ओट मैं छुपे हैं..l

 

तभी एक साधारण दिखने वाली लडकी...एक बूँद ज़िंदगी के लिए मेरी जंग को देख, अपनी किताबें फैंक, वहीं पड़ा एक पत्थर उठा बेतहाशा दौढ़ पड़ी उस कुत्ते के पीछे.l सारे कुत्ते जोर जोर से भौंकने लगे थे, यहाँ तक कि वो सुबह ही आतंकित हो गयी थी दिल दहला देने वाले कुत्तों के शोर से l पर भौंकने की लत से मजबूर कुत्ते नें जैसे ही भौंकने को जबड़ा खोला, मैं नीचे गिर पड़ी.... l

 

थोड़ी देर तक खड़े रहे कुत्ते मुझको और उस मासूम लड़की को घेरे, फिर भौंकते भौंकते हार कर भाग गए  और मैं डरी, सहमी, घायल प्राण लिए, ज़ख़्मी पंख लिए, पड़ी रही वहीं पगडंडी पर..... अब तो टूटा पैर लिए फुदक भी नहीं पा रही थी l

 

तभी बड़े दो कोमल हाथ, जिन्होंने मुझे समेट लिया हथेलियों के नन्हे घरोंदे में, और फिर से उड़ने के काबिल बनाया .....

 

आज भी दौड़ता है उन हाथों के संरक्षण का संजीवनी सा स्पर्श मेरी रगों में और मैं उड़ जाती हूँ विस्तृत आसमान में,..........सोचते हुए  " क्यों खोजता हैं इंसान ईश्वर को ऊपर आसमान में, जबकि वो तो नीचे ही है, उन्ही के बीच, जाने कहाँ किस रूप में...!”

Views: 15686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on May 7, 2012 at 6:23pm

बचपन में सिद्धार्थ की कहानी पढ़ी थी याद हो आई सुन्दर और मार्मिक भावों की सशक्त रचना हार्दिक बधाई !!

Comment by आशीष यादव on May 7, 2012 at 5:25pm

 क्यों खोजता हैं इंसान ईश्वर को ऊपर आसमान में, जबकि वो तो नीचे ही है, उन्ही के बीच, जाने कहाँ किस रूप में...!”

जी बिल्कुल सही कहा आपने।
भगवान कहीं और नही यहीं है। बस हम पहचान नही पाते।
शब्दों की खूबसूरती इस रचना को और खूबसूरत बना रही है।


Comment by ganesh lohani on May 7, 2012 at 2:52pm

डाक्टर साहिबा नमस्कार,

बधाई इस कहानी के लिए | बहुत साधारण शब्दों में एक बेजुबाँ की आत्म कथा लिखी है | भाव विभोर कर दिया |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 7, 2012 at 2:05pm

आदरणीय प्राची  जी, सादर.

आपकी यह रचना bhaav  विव्हल कर gayi. antim लाइने gajab की हैं. बधाई. 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 7, 2012 at 1:56pm

तभी बड़े दो कोमल हाथ, जिन्होंने मुझे समेट लिया हथेलियों के नन्हे घरोंदे में, और फिर से उड़ने के काबिल बनाया .....

 

आज भी दौड़ता है उन हाथों के संरक्षण का संजीवनी सा स्पर्श मेरी रगों में और मैं उड़ जाती हूँ विस्तृत आसमान में,

डॉ प्राची जी बहुत सुन्दर ..काश ऐसा ही हो सब का मन उस जीवन बचाने वाली बाला सा   ..सब प्रेम करना सीख जाएँ.. प्रभु हम सब में ही तो हैं ...दुनिया प्यारी हो जाये ..

बधाई 
भ्रमर ५ 

Comment by MAHIMA SHREE on May 7, 2012 at 1:34pm
" क्यों खोजता हैं इंसान ईश्वर को ऊपर आसमान में, जबकि वो तो नीचे ही है, उन्ही के बीच, जाने कहाँ किस रूप में...!”
छोटी सी पर बहुत ही सुंदर सन्देश देती कहानी ..बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"सादर प्रणाम🙏 आदरणीय चेतन प्रकाश जी ! अच्छे दोहों के साथ आयोजन में सहभागी बने हैं आप।बहुत बधाई।"
18 hours ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ! सादर अभिवादन 🙏 बहुत ही अच्छे और सारगर्भित दोहे कहे आपने।  // संकट में…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service