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अभिव्यक्ति - खामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता !

अभिव्यक्ति - खामोश  मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता !

अपनों ने अगर पीठ पे मारा नहीं होता ,

दुनिया की कोई जंग वो हारा नहीं होता |

 

उनकी हनक से दौड़ने लगती हैं फ़ाइलें ,

रिश्वत  न दें तो काम हमारा नहीं होता |

 

है इश्क तो शक की दरो दीवार गिरा दो ,

बादल हो तो सूरज का नज़ारा नहीं होता |

 

चलती हुई कलम में इन्कलाब का दम है ,

शब्दों से खतरनाक शरारा नहीं होता |

 

हालात सिखा देते हैं कोहराम मचाना ,

खामोश  मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता |

 

बचना ज़रा की मिलते हैं  पैकिट में बंद लोग ,

भीतर के आदमी  का नज़ारा नहीं होता |

 

हर दौर में गैलीलियो को कैद मिली है ,

सच हर किसी की आँख का तारा नहीं होता |

 

उन छूटती साँसों को दो अपनों का प्यार भी ,

पेंशन की रकम ही से गुज़ारा नहीं होता |

 

तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,

झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता |

 

हम भी नहीं हो जाते वही पीर कलंदर ,

गर सोच में ये मेरा -  तुम्हारा नहीं होता |

                   - अभिनव अरुण [15042012]

[ आत्मकथ्य :- साथियो !  लिखा ग़ज़ल सोच  कर ही है ; पर जानता हूँ यह उस्तादों की कसौटी पर शायद ही खरी उतरे | सो पहले खेद व्यक्त करता हूँ | इसे एक  कविता की तरह ही परखें - पढ़े - साहित्यिक  आनंद लें यही चाह है , बस | ]

 

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Comment by Abhinav Arun on April 16, 2012 at 12:32pm

आदरणीय श्री satish मपत्पुरी आपका भी हार्दिक आभारी हूँ !!

Comment by Abhinav Arun on April 16, 2012 at 12:31pm

Sarita सिन्हा जी बहुत आभारी हूँ आपका !!

Comment by Abhinav Arun on April 16, 2012 at 12:31pm

adarniyaa Seema agrawal जी हार्दिक आभार आपका आपने रचना की सटीक समीक्षा की hai बहुत शुक्रिया !!

Comment by Abhinav Arun on April 16, 2012 at 12:30pm

श्री वीनस केसरी जी हार्दिक रूप से आभारी हूँ आपका utsaah वर्धन मेरे लेखन का संबल hai !!

Comment by वीनस केसरी on April 16, 2012 at 2:11am

तहजीब अदब और सलीका भी तो कुछ है ,

झुकता हुआ हर शख्स बिचारा नहीं होता |

वाह अरुण जी वाह
सुन्दर भावाभिव्यक्ति

Comment by Sarita Sinha on April 15, 2012 at 11:15pm

अरुण जी, बहुत सही बात कही है आप ने, 

खामोश मिज़ाजी से गुज़ारा नहीं होता...सार्थक एवं सटीक...
Comment by satish mapatpuri on April 15, 2012 at 9:26pm

खुबसूरत ख्याल .......... सुन्दर पेशकश ........ साधुवाद स्वीकार करें अरुण जी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2012 at 4:29pm

अरुण जी, जबरदस्त शेर कहे हैं आपने , ख्याल बहुत ही पसंद आया , दाद कुबूल करें |

Comment by Abhinav Arun on April 15, 2012 at 10:26am
श्रद्धेया राजेश कुमारी जी आपका भी बहुत आभार और सुझाव सर आँखों पर !!
Comment by Abhinav Arun on April 15, 2012 at 10:23am

आभार  परम   आदरणीय श्री बागी  जी यदि उपयुक्त   लगे   तो इसे पोस्ट  में ठीक  कर दें और दूसरी  रचना  को भी कृपया \ सादर  देख  लें संशोधन  कर देंइतना  अधिकार  तो आपको  \ obo को कब  का दिया  है |

 

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