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कितना अच्छा लगता है

कितना अच्छा लगता है

यूँ अनायास मिलना

दुनियाँ के गलियारों में

साथ-साथ फिरना

 

अभी छू गई है

पुरवाई गालों को

दे गया चुनौती कौन

दर्द के उबालों को

 

दहलीज को चूम रहे

आँगन अमलतास के

उधेड़ दो न अब घूंघट

क्षणजीवी प्यास के

 

कितनी भारी है

आँखों का सूनापन

सोया सा लगता है

सांसों का सूनापन

 

मन से टकराता है

ऐसे सन्नाटा

कंठ में चुभे जैसे

सेही का कांटा

 

पोर पोर में सरसों फूली

आँखें रसमसाती

मधु अतीत की सुगंध पीकर

पांखें कसमसाती

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2012 at 11:06pm

आदरणीय राजिव जी, बहुत ही अच्छी रचना, बधाई आपको |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 6, 2012 at 10:11pm

आदरणीय राजीव   जी , सादर अभिवादन  ,  हमेशा की तरह ,सुन्दर भाव पूर्ण रचना. बधाई. 

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on April 6, 2012 at 9:27pm

अभी छू गई है

पुरवाई गालों को

दे गया चुनौती कौन

दर्द के उबालों को

भावाभियक्ति एवं मर्म का स्पष्ट चित्रण करती रचना पर बधाई स्वीकार करें सर

 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on April 6, 2012 at 1:14pm

दहलीज को चूम रहे
आँगन अमलतास के
उधेड़ दो न अब घूंघट
क्षणजीवी प्यास के
आदरणीय राजीव जी, इन् पंक्तियों ने निरुत्तर कर दिया| कितने उदात्त भाव हैं इनमें| मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 6, 2012 at 12:11pm

bahut hi sundar bhaav ,shabd chayan ,lay ....bahut badhia.....badhaai aapko is sundar rachna ke liye.

Comment by MAHIMA SHREE on April 6, 2012 at 12:02pm
दहलीज को चूम रहे
आँगन अमलतास के
उधेड़ दो न अब घूंघट
क्षणजीवी प्यास के...आदरणीय राजीव सर ,
आपकी लेखनी का अंदाज ही जुदा है....बहुत सुंदर ..बहुत अच्छा लगा...बधाई स्वीकार करे..

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