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हुईं थीं मुद्दतें फिर, वक़्त कुछ ख़ाली सा गुज़रा है;
कोई बीता हुआ मंज़र, ज़हन में आके ठहरा है;


कहीं जाऊं, मैं कुछ सोचूँ, न जाने क्या हुआ है,
मेरी आज़ाद यादों पर किस तसव्वुर का पहरा है;


वो आये तो ख़िज़ां में भी एक ख़ुशगवारी थी,
नहीं हैं वो तो मुझको इन बहारों में भी सेहरा है;


मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों,
कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है;


हुई मय से जो तौबा यार वाइज़ बन गया था,
जो देखा जा के तो जाना वो, न सुधरा था न सुधरा है;


कभी ख़्वाबों में धुंधली सी कोई तस्वीर बनती है,
हुए उनसे मुख़ातिब जाना, यही हसीन चेहरा है;


थी जो गफ़लत मुझे के ये हक़ीक़त है हसीं कितनी;
खुली जो आँख पाया कोई, ख़्वाब सुनहरा है;


चले करने बयां अलफ़ाज़ में उन लम्हात को 'वाहिद',
समझ आया उन्हें ये शख़्स, अंधा-गूंगा-बहरा है;

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Comment by MAHIMA SHREE on March 1, 2012 at 8:36pm
वहीद जी, आपकी सभी ग़ज़ले तो एक से बढ़ कर
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 1, 2012 at 12:19pm

सराहना के लिए आपका आभार राकेश जी|

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 1, 2012 at 11:58am

Wahid bhai, bahut khubsurat Ghazal. badhai.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 1, 2012 at 11:18am

आदरणीय सौरभ जी नमस्कार,

आपसे प्रोत्साहन के चंद अलफ़ाज़ पा कर जो ख़ुशी मिली उसे ज़ाहिर करना मुश्किल है| तहेदिल से शुक्रिया आपका,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 29, 2012 at 11:39pm

मुहब्बत की गहराई में डूबा इस क़दर यारों,
कोई दरिया-समंदर हो, लगता कम ही गहरा है;

बहुत सुन्दर. हार्दिक शुभकामनाएँ, संदीपजी.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on February 29, 2012 at 6:51pm

वीनस जी शुभ संध्या,

धीरे-धीरे लिखते-लिखते और आप जैसे सुधि मित्रों के प्रबुद्ध मार्गदर्शन में अपेक्षित सुधार को हासिल कर सकूंगा ऐसा मुझे विश्वास है| आपकी प्रतिक्रिया और शुभकामनाओं के लिए हृदयतल से आभारी हूँ|

Comment by वीनस केसरी on February 29, 2012 at 5:35pm

मित्र आपके पास बहुत उम्दा भाव हैं और कहन तो उससे भी अच्छी है जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं
आपके पास कवि मन है और आप शाइरी कर रहे हैं यह भी आपको एक आम आदमी से हटा कर विशेष बनाता है

शिल्पगत कमियों  को दूर कर लें तो आपमें अपार संभावनाएं हैं
शुभकामनाएं स्वीकारें

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