त्यागपत्र (कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
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-------------- अंक - 6 ---------------
दोषी लोगों को सज़ा दिलाने के लिए प्रबल प्रताप सिंह कृतसंकल्प थे, किन्तु राजनीतिक हलकों में उनकी पहुँच अच्छी थी. पार्टी अध्यक्ष उमाकांत ने सिंह साहेब से स्वयं मिलकर कहा - ' आपने जिन लोगों को दोषी करार दिया है, वे अपनी पार्टी के शुभचिंतक हैं.'
अध्यक्ष महोदय की बातें सुनकर प्रबल बाबू आवाक रह गए. खीज कर उन्होंने कहा - 'पार्टी के शुभचिंतकों को गैरकानूनी हरकतों की छूट है क्या? ' सिंह साहेब की बातों से उनके इरादों का स्पष्ट आभास हो रहा था. अध्यक्ष के बार-बार कहने के बावजूद जब प्रबल बाबू ने नरम रुख नहीं अपनाया तो उन्होंने भी अपना तेवर तल्ख़ कर लिया - ' आपको ये मालूम होना चाहिए कि उनलोगों की पहुँच आलाकमान तक है, यदि वहाँ से आपको पदमुक्त करने का निर्देश आ जाय तो मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पाऊँगा.'
फिर भी प्रबल बाबू के रुख में कोई नरमी नहीं आई- ' मैं त्यागपत्र देने को प्रस्तुत हूँ. मुझे मंत्री-पद से अधिक उन वादों का ख्याल है, जो मैंने भोले-भाले लोगों से किया है.' अध्यक्ष उमाकांत ने कुर्सी पर पहलू बदलते हुए कहा - ' आप में जोश तो है प्रबल बाबू पर होश नहीं है. राजनीतिज्ञ को एक साथ दोहरी ज़िन्दगी जीनी पड़ती है, एक चौराहे की और एक घर की. चौराहे पर उसके सामने भोली-भाली जनता होती है, जहाँ तरह-तरह के वादे कर देने भर से काम निकल सकता है, किन्तु घर पर उसके सामने बीवी और बच्चे होते हैं, जहाँ वह मात्र पति और पिता होता है. सिंह साहेब, ज़िन्दगी उपदेशों से नहीं पैसों से आगे बढ़ती है. महाराणा प्रताप की दास्तान सब कह सकते हैं पर महाराणा प्रताप बन नहीं सकते. हकीक़त को झुठलाकर इंसान सिर्फ अपने को ही धोखा दे सकता है. आपके सामने आपके बच्चों का भविष्य है.'
प्रबल बाबू की खामोशी यह बता रही थी कि उनके भीतर विचारों का सैलाब उमड़ रहा है. कहीं नेक विचार उनके भीतर के जग रहे शैतान को पराजित न कर दे, यह सोचकर अध्यक्ष ने उनकी स्वार्थपरता को हवा देना जारी रखा. ........
(क्रमश:)
Comment
समाज की निर्बीज खीझ को क्या ही व्यक्त किया है आपने.. वाह !
//कहीं नेक विचार उनके भीतर के जग रहे शैतान को पराजित न कर दे, यह सोचकर अध्यक्ष ने उनकी स्वार्थपरता को हवा देना जारी रखा//
मानसिक द्वंद्व को उभारती पंक्ति. रोचकता बनी है. जारी रहें.
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