For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

कंधे पर मेरे एक अज़ीब सा लिजलिजा चेहरा उग आया है.. .
गोया सलवटों पड़ी चादर पड़ी हो, जहाँ --
करवटें बदलती लाचारी टूट-टूट कर रोती रहती है चुपचाप.

निठल्ले आईने पर
सिर्फ़ धूल की परत ही नहीं होती.. भुतहा आवाज़ों की आड़ी-तिरछी लहरदार रेखाएँ भी होती हैं
जिन्हें स्मृतियों की चीटियों ने अपनी बे-थकी आवारग़ी में बना रखी होती हैं
उन चीटियों को इन आईनों पर चलने से कोई कभी रोक पाया है क्या आजतक?..
 
सूनी आँखों से इन परतों को हटाना
सूखे कुएँ से पलट कर गूँजती कई-कई आवाज़ों का कोलाज बना देता है
कई-कई विद्रुप चेहरों / भहराती घटनाओं से अँटे इस कोलाज में बीत गये जाने कितने-कितने चेहरे उगते-मुँदते रहते हैं.

दीखता है.. .  ज्यादा दिन नहीं बीते--
मेरे कंधे पर उग आये इस समय-बलत्कृत चेहरे के पहले
संभावनाओं के टूसे-सा एक मासूम-सा चेहरा भी होता था, ठोला-सा
फटी-फटी आँखों सबकुछ बूझ लेने की ज़द्दोज़हद में भकुआया हुआ ताकता  --भोला-सा
बाबा की उँगलियाँ पकड़ उछाह भरा थप-थप चलता --लोला-सा ..

सोमवार का गंगा-नहान..
इतवार की चौपाल..
धूमन बनिया की दुकान.. बिसनाथ हजाम की पाट...
बुध-शनि की हाट.. ठेले की चाट.. .
...चार आने.. पउआऽऽऽ...  पेट भरउआऽऽऽ... खाले रे बउआऽऽऽ .. !! ..
बँसरोपन की टिकरी..
बटेसर की लकठो.. 
उगना फुआ की कुटकी..
बोझन का पटउरा, शफ़्फ़ाक बताशे
हिनुआना की फाँक
जामुन के डोभे
दँत-कोठ इमली
टिकोरों के कट्टे
बाबा की पिठइयाँ
चाचा के कंधे.. घूम-घुमइयाँ..
खिलखिलाती बुआएँ, चिनचिनाती चाचियाँ
ओसारे की झपकी..
मइया की थपकी
कनही कहानियाँ  --कहीं की पढ़ी, कुछ-कुछ जुबानियाँ.. .
साँझ के खेल
इस पल झगड़े, उस पल मेल
ओक्का-बोका, तीन-तड़ोका / लउआ-लाठी.. चन्दन-काठी..
घुघुआ मामा.. नानी-नाना.. .
नीम की छाया, कैसी माया / इसकी सुननी, उसको ताना..

आऽऽऽऽऽह...    आह ज़माना ! ..
कंधे-गोदी, नेह-छोह
मनोंमन दुलार.. ढेरम्ढेर प्यार
निस्स्वार्थ, निश्छल, निर्दोष, निरहंकार .. .

देर तक..
देर-देर तक अब
भीगते गालों पर पनियायी आखें बोयी हुई माज़ी टूँगती रहती हैं
पर इस लिजलिजे चेहरे से एक अदद सवाल नहीं करतीं
कि, इस अफ़सोसनाक होने का आगामी अतीत
वो नन्हा सबकुछ निहारता, परखता, बूझता हुआ भी महसूस कैसे नहीं कर पाया
क्योंकि,

क्योंकि... . ज़िन्दग़ी के सूखे कुओं से सिर्फ़ और सिर्फ़ सुना जाता है, सवाल नहीं किये जाते.


***************************
टिकरी, लकठो, पटउरा, कुटकी, बताशे - देसी मिठाइयाँ ;  हिनुआना - तरबूज ;  दँत-कोठ - दाँतों का खट्टे से नम होना ;  टिकोरे - अमिया, आम का कच्चा छोटा फल ;  पिठइयाँ - शिशुओं को पीठ पर बैठा कर घुमाना ;  कनही - कानी, अपूर्ण ;  ओक्का-बोका.. ..घुघुआ मामा -  बचपन में खेले जाने वाले इन्डोर-गेम्स !

****************************

(OBO के महा-उत्सव अंक - 12  में सम्मिलित रचना)

 

Views: 836

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 20, 2012 at 5:51pm

आदरणीय सौरभ जी, सादर नमस्कार, सर्व प्रथम इस "नॉस्टोल्जिक" कर देने वाले काव्या के लिए हार्दिक बधाई. हर कवि हर शायर को अपने बीती बचपन की बातें बहुत प्रिय होती हैं, और अपनी मात्र भूमि पर तो हर किसी ने लिखा ही है,  किंतु जो लेख आपके गाव घर के बने पापड और मुरब्बो  की याद दिला दें, या ये याद दिला दें की मम्मी कैसे एकादशी के दिन सुबह चार बजे उठ के सूप पीटती थी, दरीद्द्र भागने के लिए, वही याद रहा जाते हैं, उन्मुक्त छंडो मे लिखी गई उन्मुक्त रचना. बहुत बहुत बधाई.   

Comment by MAHIMA SHREE on March 20, 2012 at 5:39pm
आदरणीय सौरभ सर,
सादर नमस्कार,
शुरु से अंत तक मंत्रमुग्ध सी पढ़ती चली गयी....अदभुत...
इस कालजयी रचना के लिए मेरी हार्दिक बधाई...जिसे बार-२ पढने पर भी फिर से पढने का सम्मोहन नहीं छुट रहा ........

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 20, 2012 at 4:43pm

आदरणीय संदीप वाहिद जी,  आपकी निश्शब्दता या आपका उदार भाव-संप्रेषण मेरे लिये पुरस्कार है, सादर स्वीकार कर रहा हूँ.

परस्पर सहयोग की अपेक्षा के साथ सादर प्रणाम.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 20, 2012 at 4:09pm

आदरणीय रवींद्र नाथ जी,  आपकी विशद टिप्पणी आत्मीय भावों से लबरेज़ है. आप जैसे प्रबुद्ध एवं संवेदनशील पाठक ने मेरी रचना को मान दिया है यह मेरे लिये परम संतोष की बात है.  

परस्पर सहयोग की हार्दिक आकांक्षा के साथ सादर प्रणाम.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 20, 2012 at 2:32pm

निःशब्द हूँ| समीक्षा करने की तो हैसियत ही नहीं है|


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 18, 2012 at 12:20am

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपको मेरी रचना पसंद आयी, इस हेतु आभारी हूँ. सहयोग बना रहे.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 24, 2012 at 9:30am

वाह सौरभ जी जीवन की आख्याति में बदलते परिवेश ,बदलते चेहरे ,बदलते भाव सब कुछ मिला आपकी इस रचना में बचपन तो दुबारा नहीं मिलता किन्तु उसकी यादें तो हमसे कोई छीन नहीं सकता |इस श्रेष्ठ रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 24, 2012 at 5:18am

आदरणीया आशा दी, सीमा जी और नज़ील भाई, इस भाव-दशा के अनुमोदन हेतु आपका हार्दिक आभार.

Comment by asha pandey ojha on February 22, 2012 at 12:46pm

अति उत्तम .. गहराई ..से युक्त .. बहुत ही कमाल की रचनाएँ ..

Comment by Nazeel on February 17, 2012 at 7:27am
Nice.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
10 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
13 minutes ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service