नहीं आऊंगी ( धारावाहिक कहानी)
लेखक - सतीश मापतपुरी
---------------अंतिम अंक --------------------
"कौन है?" मैंने हड़बड़ाकर पूछा .
Comment
भाई सतीशजी, हार्दिक बधाई.
कहानी की सफल समाप्ति के उपरांत पाठक कहानी के नायक प्रसून की तरह निःशब्द अवश्य हो जाता है, परन्तु, उसका मनस अतिशय घुर्णन लिये अनेकानेक प्रश्नों के घालमेल की अनुभूति करता है. ऐसे-ऐसे प्रश्न जिनके संतुष्टिकारक उत्तर नहीं हुआ करते, होती हैं तो विडंबनाएँ जो समाज की अव्यावहारिक परिपाटियों और व्याप्त घिनौने ढोंग से बजबजाती गंदी नालियों में पिल्लुओं की तरह उपजती हैं.
कहानी के कथ्य का प्रवाह तेज़ है और यही इसकी सफलता का राज़ है. शिल्प कसा हुआ है किन्तु कुछ प्रयास इसके गठन को और सशक्त कर सकता था. कहानी की संवेदनाशीलता प्रभावित करती है तथा इसकी भावप्रवणता इसके पहले अंक से ही पाठकों को अपने साथ कर लेने में सक्षम है.
अल्हड़ वयस की प्राकृतिक उत्सुकता, उस वयस-विशेष में संभव सहज आकर्षण, पवित्र समर्पण और इनसब पर हावी होती सामाजिक विद्रुपताओं पर लिखी इस सशक्त कहानी के लिये आपको पुनः-पुनः हार्दिक बधाई.
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