For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या इसी को मुहब्बत कहते है

क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
जब हम बैचेन से रहते हैं
अक्सर कुछ कहने की चाह मे
सपनों मे खोये रहते हैं
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
 
उनकी एक झलक पाने के लिए
हम हर दिन राहों मे इंतजार करते हैं
न जाने क्यों हम कुछ कहने से डरते हैं
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
 
अक्सर वो सपनों में आती है
आँखें खोलूँ तो न जाने कहाँ चली जाती है
सिर्फ इन आँखों को उसकी ही सूरत भाती है
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं

Views: 370

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Bishwajit yadav on July 30, 2011 at 12:43pm
Thanks sanjay jee,satish jee,saurabh jee,ganesh je aap log ke comant pada ke aacha laga thanks.....
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on July 27, 2011 at 7:03pm

आप की रचना सुन्दर है !

विश्वजीत बाबू आगे बढ़ो आप सही जा रहे हो , अभी तो दिल-लगी सुरु हुई है जो आगे जाके दिल की लगी बनेगी और एक दुसरे से  कभी  एकरार कभी तकरार सुरु होगा,बहुत से वादे बने, बिगड़ेंगे  और बहुत से ऐसे मोड़ आयेंगे जाहाँ से मुडना,मुडकर चलना आप को हल्का/और बहुत भारी महसूस होवेगा तब आपके जिंदगी के मायने बदलेंगे , और आप को सही प्यार की पहचान हो जायेगी ,

प्रिय विश्वजीत प्यार की भावना से दूषित मन / और करना महापाप होता है ! आप ने जो रचना लिखी है ,वह सुन्दर है ! अभी आप छात्र है ! अभ्यास में मन लागाईए  ! और खुद की एक पहचान बनाओ क्यूंकि यह समय हाँथ से फिसला तो फिर वापस नहीं आयेगा..............................आप की सुन्दर रचना के लिए आप को धन्यवाद......... 

Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on July 27, 2011 at 7:03pm

आप की रचना सुन्दर है !

विश्वजीत बाबू आगे बढ़ो आप सही जा रहे हो , अभी तो दिल-लगी सुरु हुई है जो आगे जाके दिल की लगी बनेगी और एक दुसरे से  कभी  एकरार कभी तकरार सुरु होगा,बहुत से वादे बने, बिगड़ेंगे  और बहुत से ऐसे मोड़ आयेंगे जाहाँ से मुडना,मुडकर चलना आप को हल्का/और बहुत भारी महसूस होवेगा तब आपके जिंदगी के मायने बदलेंगे , और आप को सही प्यार की पहचान हो जायेगी ,

प्रिय विश्वजीत प्यार की भावना से दूषित मन / और करना महापाप होता है ! आप ने जो रचना लिखी है ,वह सुन्दर है ! अभी आप छात्र है ! अभ्यास में मन लागाईए  ! और खुद की एक पहचान बनाओ क्यूंकि यह समय हाँथ से फिसला तो फिर वापस नहीं आयेगा..............................आप की सुन्दर रचना के लिए आप को धन्यवाद......... 

Comment by satish mapatpuri on July 27, 2011 at 12:53am

उनकी एक झलक पाने के लिए
हम हर दिन राहों मे इंतजार करते हैं
न जाने क्यों हम कुछ कहने से डरते हैं
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं

जुबां खामोश रहती है नज़र से बात होती है.बिश्वजीत जी ,प्यार को पहचान गए हैं आप,सुन्दर रचना -बधाई हो.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 26, 2011 at 9:39pm

"क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं??"

-- अब बाकी क्या रहा पूछने को? ..  प्रयासरत रहें. ... शुभकामनाएँ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 26, 2011 at 9:19pm

क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
जब हम बैचेन से रहते हैं
अक्सर कुछ कहने की चाह मे
सपनों मे खोये रहते हैं
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं

 

हाँ भाई हाँ , इसी को मुहब्बत कहते है, अच्छी रचना, सुंदर प्रस्तुति, बधाई आपको | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आयोजनों में सम्मिलित न होना और फिर आयोजन की शर्तों के अनुरूप रचनाकर्म कर इसी पटल पर प्रस्तुत किया…"
6 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
17 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service