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जूते तो शोरूम  में, पुस्तक अब फुटपाथ।
कैसे लोगो फिर लगे, कहो तरक्की हाथ।२।
*
कलयुग में उलटा हुआ, मानव का आचार
महल बनाता श्वान  को, गायों को दुत्कार।२।
*
पढ़ो धर्म के  साथ  ही, नित  नूतन विज्ञान
तब जाकर होगा कहीं, सुंदर सकल जहान।३।
*
केवल कोरा ज्ञान ही, कब सुख का आधार
साथ चाहिए  सीख  में,  नैतिकता संस्कार।४।
*
दिखते पग पग खूब हैं, होते नित सतसंग
फिर भी करते लोग  हैं, काम  बड़े बदरंग।५।
*
मन में नैतिक ज्ञान का, जला रहे जब दीप
खोट कभी  आचार  के, आते नहीं समीप।६।
*
शिक्षा मिले सुधार की, हर गेह गाँव स्कूल
मसला जायेगा नहीं, कभी कहीं फिर फूल।७।
*
नैतिक शिक्षा  है  नहीं, केवल  कोरा ज्ञान
दयाभावना मर गयी, है जीवित अभिमान।८।
*
मत आने दो सोच में, कभी कहीं भी लोच
यह जीवन के पाँव को, पलपल देती मोच।९।
*
बिकती नकद  शराब  नित, लाते  दूध उधार।
कहे 'मुसाफिर' है यही, सभ्य जगत की हार।१०।
***
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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