For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत -२३ (लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

फागुन  बनकर  डाकिया, लाया  यह संदेश।
घर भेजो ऋतुराज को, पतझड़ जा परदेश।।
*
माघ पठाता  चैत  को, फागुन कर उपहार।
फूल शूल सब आस  में, आ  उमड़े हैं द्वार।।
हवा किरण अब गंध का, करते हैं आभार।
नूतन कोंपल  देख  कर, नाच रहा सन्सार।।
*
उमड़े झट यह देखने, सुख का गेह प्रवेश।
फागुन  बनकर  डाकिया, लाया  यह संदेश।।
*
मधुबन में मन के जहाँ, बैठा था पतझार।
नीरसता की ही सहज, नित बहती थी धार।।
फूटी कोंपल आस की, है हर्षित घर द्वार।
उल्लासों का फिर वहाँ, दिखता नव विस्तार।।
*
हर सूनापन त्याग अब, उल्लासित परिवेश।
फागुन  बनकर  डाकिया, लाया  यह संदेश।।
*
विरही मन को दग्धकर, गन्धित मन्द समीर।
खुद बौरायी फिर रही, कालिन्दी के तीर।।
कामदेव का भस्म हो, चाहे सकल शरीर।
मन मन छिपकर आत्मा, करने लगी अधीर।।
*
चञ्चल बालक सा हुआ, जो भी था दरवेश।
फागुन  बनकर  डाकिया, लाया  यह संदेश।।
*
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छन्द।
सूनी पड़ी कलाइयाँ, खिलखिल हँसी अमन्द।।
तितली भौंरें मस्त नित, पाकर यूँ मकरन्द।
पतझड़ बीता तो हुआ, चहुँदिश फिर आनन्द।।
*
क्षमा काम को कर रमे, कहते रमा उमेश।
फागुन  बनकर  डाकिया, लाया  यह संदेश।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

Views: 191

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 29, 2023 at 7:13am

आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। गीत ने आपकी उपस्थिति से पूर्णता प्राप्त की। अपार स्नेह के लिए हार्दिक आभार। 

आत्मा वाली पंक्ति में सुधार किया है कैसा हुआ है मार्गदर्शन करें।

"आत्मरूप में छिप करे, मन को किन्तु अधीर"

आपकी उपस्थिति का देर से संज्ञान लेने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ । सादर..

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 29, 2023 at 7:07am

आ. भाई मिथिलेश जी सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति, स्नेह और सुझाव के लिए हार्दिक आभार।

"पतझड़ को परदेश" आपकी सलाह उचित है। किन्तु यहा कहने का मन्तव्य दूसरा ही है। यहाँ पतझड़ को परदेश जाकर ऋतुराज को घर भेजने के लिए कहा जा रहा है। सादर..

पुनर्विचार निवेदित पंक्ति को इस प्रकार देखें - "आत्मरूप में छिप करे, मन को किन्तु अधीर"


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 22, 2023 at 4:50pm

आदरणीय लक्ष्मण धामीजी, क्या ही मनभावन गीत हुआ है !  वाह वाह 

विशेषकर निम्नलिखित बन्द मुग्ध कर रहा है - 

फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छन्द।
सूनी पड़ी कलाइयाँ, खिलखिल हँसी अमन्द।।
तितली भौंरें मस्त नित, पाकर यूँ मकरन्द।
पतझड़ बीता तो हुआ, चहुँदिश फिर आनन्द।।
क्षमा काम को कर रमे, कहते रमा उमेश।

एक बात 

आत्मा जैसे शब्दों की वर्तनियों की मात्रा की गणना उर्दू के उच्चारण नितम के अनुसार न करें. 

हिन्दी भाषा में मात्रा गणना आत्+मा होगी, न कि आ+त्+मा. 

एक सुन्दर ऋतुगीत के लिए हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 15, 2023 at 10:53pm

आदरणीय लक्षमण धामी जी, बहुत बढ़िया गीत लिखा है आपने. हर बंद बहुत सुन्दर हुआ है. हार्दिक बधाई. 

एक सलाह, अगर ठीक लगे तो मुखड़े को ऐसे कर सकते हैं-

घर भेजो ऋतुराज को,

पतझड़ को परदेश।

फागुन बनकर डाकिया, लाया  यह संदेश।।

इसके अतिरिक्त - //मन मन छिपकर आत्मा, करने लगी अधीर।।// इस पंक्ति पर पुनः विचार निवेदित है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Usha Awasthi commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"आदरणीय डा0 विजय शंकर जी,रचना अच्छी लगी, जानकर खुशी हुई। हार्दिक आभार आपका,सादर। "
1 hour ago
Dr. Vijai Shanker commented on Usha Awasthi's blog post मन नहीं है
"आदरणीय उषा अवस्थी जी , रचना अछी है। हाँ , यह भी कहा जाता है कि कभी कभी कुछ लिखना हम लोगों की विवशता…"
4 hours ago
Dr. Vijai Shanker commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आभार , सादर।"
4 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

मधुमालती छंद. . . .

मधुमालती छंद ....1डर कर कभी, रोना नहीं ।विश्वास को, खोना  नहीं ।तूफान   में, सोना  नहीं ।नफरत कभी ,…See More
11 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 (विषय: आरंभ)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-102 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
11 hours ago
Usha Awasthi shared their blog post on Facebook
23 hours ago
Usha Awasthi posted a blog post

मन नहीं है

मन नहीं हैउषा अवस्थीअब कुछ भी लिखने का, मन नहीं है क्या कहें ? साहित्य के नाम परचलाए जा रहे व्यापार…See More
23 hours ago
Balram Dhakar posted a blog post

ग़ज़ल : बलराम धाकड़ (पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।)

22 22 22 22 22 2 पाँव कब्र में जो लटकाकर बैठे हैं।उनके मन में भी सौ अजगर बैठे हैं। 'ए' की बेटी,…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद (ग़ज़ल)
"आ. भाई धर्मेंद्र जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। बहुत बहुत हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Chetan Prakash's blog post सावन गीत....कजरी
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर कजरी हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Dr. Vijai Shanker's blog post सत्य और झूठ -- डॉ० विजय शंकर
"आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
KALPANA BHATT ('रौनक़') posted a blog post

भविष्य निधि (लघुकथा)

                                                    एक सर्वेक्षण-कर्ता की डायरी दिनांक :- ३०…See More
Tuesday

© 2023   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service