For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूर्य कहलाएं पिता थे जिसके

माता सती कुमारी

जननी का क्षीर चखा न जिसने

वो वीर अद्भुत धनुर्धारी।।

 

निज समाधि में निरत रहा जो

स्वयं विकास किया था भारी

पालना बनी थी आब की धारा

बिछौना बनी पिटारी।।

 

ज्ञानी-ध्यानी, प्रतापी-तपस्वी

जिसका पौरुष था अभिमानी

कोलाहल से दूर नगर के

जो सम्यक अभ्यास का था पुजारी।।

 

नतमस्त्क करता प्रतिबल को

लगाता घात विजय की खूब दिखा

प्रचंडतम धूमकेतु-सा आता

चाहे कुंज्ज-कानन में कहीं दूर पला।।

 

वन्यकुसुम सा खिला कर्ण

छटा सूर्य के तेज की सुनहरी

अस्त्र-शस्त्र विद्या में जो परांगत

उसका सच जानने को; व्याकुल के थे नर-नारी।।

 

सर्वश्रेष्ठ योद्धा अर्जुन जग का

बात ये मन में विघ्न-खलल थी डाली

कूद गया वो भरी सभा में

अपनी सिद्ध करने दावेदारी।।

 

अवेहलना कर भरे समाज की

देने धनंजय को चुनौती ठानी

एक शूरमा चुप क्यूँ रहता  

जब गुरु द्रोण ने सीमा लांघी।।

 

स्तब्ध खड़े सब देखते उसको

आई विपदा कहाँ से भारी

जाति-गोत्र थे जिसकी पूछते

चुनौती अर्जुन ने स्वीकारी।।

 

अर्जुन को मैं प्रतिद्विंदी मानता

राधेय पहचान हमारी

निर्णय किया क्यूं बिना परीक्षा

ये गुरु की बात निराली।।

 

केवल राज-बगीचे में नहीं है खिलते

अद्भुत वीर, ब्रह्मचारी

चुन-चुनकर रखती वीर अनोखे

ये पृकृति की बात निराली।।

 

राजवंश उसका कुल पुछते

क्रूर नियति ने दृष्टि डाली

रंगत चहेरे की सबकी उड़ गई

तब भीष्म ने परिस्थिति संभाली।।

 

बचपन से जिसे छलती आई

न साथ यहाँ भी छोड़ी

भाग्यहीनता ने फिर वार किया था  

पर न समाज ने आंखे खोली||

 

सुन विदर्ण हो गया उसका हृदय

छलनी अंतस तक कर डाली

गुण-ज्ञान का क्या-कोई मोल न जग में

इससे त्रस्त क्यूं दुनियाँ सारी।।

 

क्षोभ में भर कर राधेय बोला

वीरों को तो भुजदंड-बाहुबल से दुनियाँ जानी

जाति-गोत्र हो क्यूं पूछते

उससे समाजहित की होती हानि।।

 

शक्ति हो तो सामना करो अर्जुन

रणक्षेत्र में जाति-पाति की बात क्यूं लानी

क्षेत्रियों उसका धर्म श्रेष्ठ है

जिसने ललकार सभी स्वीकारी।।

 

गुरु कृपाचार्य फिर आगे आए

माया तुम पर क्रोध ने डाली

राजपुत्र से राजपुत्र या राजा द्वंद है करते

क्यूँ समझ न आती ये छोटी-सी बात तुम्हारी।।

 

द्वंद जो चाहते अर्जुन से तो

बताओं सत्ता कहाँ तुम्हारी

किसी राजवंश के वशंज

हो किसी उच्च जाति के अधिकारी||

 

तेजवान वो देदीप्यवान

उसका जनसभा मुखमंडल तेज निहारी

अजय-निडर वो निर्भक यौद्धा

कह सुतपुत्र चुनौती उसकी टाली||

 

सयोधन आता शाबाशी देता

निडरता से जिसकी यारी

अधर्म से जिसका नाता हमेशा

शुद्ध-बुद्धि बात कर डाली||

 

वीरों का न कोई जाति-गोत्र हो

प्रतियोगिता में ऐसी शर्त कहाँ से आनी

युवराज के हक मैं राजा बनाता

सुन जनता को बड़ी हैरानी।।

 

भावुक, दानी, समरशूर वो

शील-पौरुष से भरपूर

मन मोहक सौंदर्य जो ऊंच कदकाठी

प्रतिभट अर्जुन का वीर।।

 

अभिलाषा द्रोण की मरती दिखती

चमत्कृत जिसका गरूर

हरण तेज का कैसे करूंगा

गहन चिंतन में पड़े गुरू द्रोण।।

 

शिष्य न बनाऊं तो राह मिले कुछ

परेशान हताहत द्रोण

सर्वश्रेष्ठ अर्जुन कैसे रहेगा

जिसके कर्ण के हाथ में प्राण।।

 

युक्ति लगाते, चिंतन करते

जिससे स्वसुत से ज्यादा प्रेम

एकलव्य नही जो दक्षिणा मांग लूं

कर्ण ज्ञानी-ध्यानी-विद्वान।।

 

मुकुट उतारकर अपने सर से

ऐसे गहन दोस्ती की नींव थी डाली

अपमानित हो रहा एक वीर अनोखा

थी उसकी लाज बचानी।।

 

मुझ अभागी पर सयोधान की

हुई क्यूं कृपा भारी

इस भरी सभा में क्या-कोई हो भी सकता

ऐसा भी परोपकारी।।

 

बैचेन-चकित हो रहा देखता

गले लगा सयोधन बना हितकारी

हैरान-परेशान क्यूं हो मेरे बंधु

क्षुद्रोपहार कुछ ऐसा नहीं है जो समझो मुझे कल्याणकारी।।

 

बस एक महावीर का प्रशस्तिकरण ये

जिसके तुम अधिकारी

कौन सा बड़ा मैने त्याग किया है

क्यूं अंतस अचरज में डाली।।

 

स्वीकार करों जो मित्र मुझे तुम

एक प्राण दो देह हमारी

परवाह नहीं मुझे लोग क्या कहेंगे

कर्ण, तेरी मित्रता सबसे प्यारी।।

 

झर-झर आँसू बहते नयन से

आई उत्थान की मेरे बारी

उऋण कैसे हो पाऊंगा

तुम पर न्यौछावर; आज से जिंदगी सारी।।

 

घेर खड़े सब अंग के वासी

लोग हो शूरता पूजन के अभिलाषी

पुष्प, कलम, कुंकुम लाए चुनकर

मधु,दूध-नीर से स्नान कराते बारी-बारी।।

 

हवनकुंड यज्ञ सजने लगे

उमंग-तरंग, हर्ष-उल्लास भी दिखता भारी

पहचान ही लेते अपना आराध्य

सच इस बात को दुनियाँ मानी।।

 

जय महाराज, जय-जय अंगेश

जनता विकल पुकार उठी थी सारी

द्वेष, ईर्ष्या, मिथ्या, अभिमान कहो पर

होती हमेशा जनता, उज्ज्वल चरित्र की पुजारी।।

मौलिक आ अप्रकाशित  रचना 

Views: 155

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"वाह। आप तो मुझसे प्रयोग की बात कह रहे थे न।‌ लेकिन आपने भी तो कितना बेहतरीन प्रयोग कर डाला…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें आदरणीय गिरिराज जी।  नीलेश जी की बात से सहमत हूँ। उर्दू की लिपि…"
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. अजय जी "
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"मोर या कौवा --------------- बूढ़ा कौवा अपने पोते को समझा रहा था। "देखो बेटा, ये हमारे साथ पहले…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"जी आभार। निरंतर विमर्श गुणवत्ता वृद्धि करते हैं। अपनी एक ग़ज़ल का मतला पेश करता हूँ। पूरी ग़ज़ल भी कभी…"
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service