For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अहसास की ग़ज़ल:मनोज अहसास

2×15

एक ताज़ा ग़ज़ल

टुकड़े टुकड़े में दिन बीता और पहाड़ सी रात कटी।
तेरी उल्फत में जाने जां ज़ीस्त यूँ ही बेबात कटी।

तूने छीन के अँधियारों से मुझको दिया नया जीवन,
तू क्या जाने फिर तेरे बिन कैसे ये सौगात कटी।

इस दुनिया की सबसे पुरानी शर्त है उपयोगी होना ,
उसका मर जाना बेहतर है जिस घोड़े की लात कटी।

चाहत के दो कतरे पीकर जीवन भर सुलगा जीवन,
खुद को लम्हा लम्हा जलाके ये तेरी खैरात कटी।

कैद कर लिया है खुद को बस खामोशी के मौसम में,
तन्हाई के आँगन में सर्दी,गर्मी,बरसात कटी।

क्या हासिल मेरे साथी ग़ज़ल में लिखकर दिल की बात,
तेरी एक नहीं के आगे मेरी सारी बात कटी।

शायद तुझे तसल्ली होगी सोचके बस इतनी सी बात,
इक प्यादे की कुर्बानी से तेरी निश्चित मात कटी।

कहना नहीं आता मुझको कुछ भी बेहतर लहज़े में,
मैं तो ग़ज़ल हूँ मेरी दिलबर तेरे बिना ज़ज़्बात कटी।

बात नहीं पूरी हो पाई और रात गहराने लगी,
और सुबह ये भी कहना है तन्हाई में रात कटी।

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 222

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by मनोज अहसास on February 10, 2023 at 10:46pm

आदरणीय  सिंह जी गजल पर अपनी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक आभार आपकी बताई हुई बातों पर गौर कर रहा हूं थोड़ा समय लगेगा तो निष्कर्ष पर पहुंच जाऊंगा आपने बहुमूल्य समय निकालकर इतने ध्यान से गजल को पड़ा इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार

Comment by Gurpreet Singh jammu on January 29, 2023 at 4:50pm

आदरणीय मनोज अहसास जी इस अच्छी ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बधाई। ग़ज़ल पढ़ते हुए जो प्वाइंट मन में आए वो साझा कर रहा हूं। अगर कुछ गलत कहूं तो कृपया क्षमा कीजिएगा।

मतले के सानी में पूरी ज़ीस्त का जिक्र है तो फिर ऊला में मुझे लगता है कि दिन और रात को हर दिन/रात बताना पड़ेगा। और सानी में उल्फत की जगह मुझे लगता है हसरत ज़्यादा फिट बैठेगा।

टुकड़ों में हर दिन बीता है पर्वत सी हर रात कटी
तेरी हसरत में यूं सारी उम्र मेरी बेबात कटी
और इस तरह आपका ऊला मिसरा का पहला हिस्सा जो मीना कुमारी जी की ग़ज़ल की मिसरे जैसा हो गया है, वो भी अलग हो जाएगा।


तीसरा शेर मुझे बहुत पसंद आया, वाह वाह क्या बात है। बस इस शेर के ऊला में मुझे लगता है पुरानी की जगह पहली ज़्यादा सही रहेगा।

छठे शेर के ऊला में मेरी तकतीय के मुताबिक एक मात्रा कम पढ़ रही है। आप देख लें। अगर आपके मुताबिक भी कम हो तो इस मिसरे को ऐसे कह सकते हैं

 क्या हासिल होगा अब गज़लों में लिख लिख कर दिल की बात

  (इसके सानी में भी सारी बात की जगह मुझे लगता है हर इक बात ज़्यादा ठीक रहेगा)

आठवें शेर के ऊला में भी मुझे एक मात्रा कम लग रही है।

ये मुझ अनजान की अल्प बुद्धि अनुसार जो समझ में आया वो कहने की कोशिश की है। बाकी गुणिजन बेहतर बता पाएंगे।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service